कविता- गोपाल कृष्ण पटेल
■बहु भी मुस्कुराना चाहती है.
-गोपाल कृष्ण पटेल
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
बहु भी किसी की बेटी है,
फिर क्यों इतना कष्ट पाती है।
छोड़कर आई है बहु,अपने पूरे घर को,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
अपने माँ बाप की प्यारी बेटी,
बहु बनकर ससुराल आती है।
बहु को दें बेटी का दर्जा,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
बेटी,बहु और कभी माँ बनकर
अपने सब फर्ज़ निभाती है।
सबके सुख-दुख को सहकर,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
बहु के बारे में क्या कहूँ,
पूरे घर आंगन में खुशियां लाती है।
सास-ससुर की सेवा करके,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
सबका रखे ध्यान और ख्याल,
अंत में खाना खाती है।।
ससुराल में बेटी बनकर,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
दहेज प्रताड़ना दे देकर,
बहुएं जिंदा जलाई जाती है।
समर्पण की भावना अपनाकर,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
माँ लक्ष्मी, दुर्गा रूप में,
देवी रूपी बहु सबके मन को भाती है।
ज़रा “बेटी” उसे कह कर पुकारो,
बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।
[ रायपुर, छत्तीसगढ़ के गोपाल कृष्ण पटेल पेशे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. रचनात्मक लेखन में इनकी रुचि है, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रहे हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में गोपाल कृष्ण पटेल की पहली कविता ‘बहु भी मुस्कुराना चाहती है’ प्रस्तुत है, कैसी है, लिखें. -संपादक ]
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