होली पर विशेष- मनीषा बनर्जी
●होली के रंग
-मनीषा बनर्जी
[ नागपुर-महाराष्ट्र ]
देखो आया बसंत
हुआ पतझड़ का अंत
आयी होली आयी होली
मन में जगी उमंगों की टोली
अमराइयों में कोयल कूकी
लो उधर कोई कली चटकी
बगिया में महकने लगी चंपा औऱ जूही
आम्र कुंज में मुकुल खिले
सबके होंठों पर मुस्कान सजे।
लाल ,नीला, पीला
हरा, सफेद, गुलाबी
रंगों से रंगी गुलनार
मानों फूलों से लदी
हुई कोई कचनार।
झाँझ,, मृदंग की थाप पर
हुड़दंग मचाएँ नारी और नर
फागुन आया फागुन आया
अबीर गुलाल हवा में छाया।
अम्मा के मुख से सुन
होली का ये मनोहर वर्णन
पूछ उठी नन्ही गुनगुन
कब तक कोरोना के डर से
बंद रहेंगे हम सब घर पे?
अम्मा बाबा हम बच्चे
कब तक फिरें यूँ बचते बचते
सुनकर अम्मा यह सवाल
बोलीं बिटिया ना कर मलाल
तेरे होंठों पर फिर से खिले गुलाल
अभी झटपट बनाती हूँ गुझिए
साथ में खील और बताशे
तभी बाबा भर लाए पिचकारी
भीगी गुनगुन सारी की सारी
बजी हंसी की जलतरंग
घर में बिखरे होली के रंग।
[ ●रायपुर जन्मस्थान, अब नागपुर में. ●ख्यातिलब्ध बाल साहित्यकार बादल कुमार बनर्जी की बेटी मनीषा बनर्जी, देश की पत्र-पत्रिकाओं में लिखती रहती हैं. ●एम ए [अंग्रेजी एवं हिन्दी साहित्य],एम फिल, बीएड,बैचलर ऑफ मास कम्युनिकेशन [स्नातक-जनसवांद ],विशारद [कथक,भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला] में पढ़ाई के बाद, ‘रिलायंस फाउंडेशन स्कूल’,नागपुर में पदस्थ है. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ की शुभचिन्तक मनीषा बनर्जी की पहली रचना ‘होली के रंग’ प्रस्तुत है, कैसी लगी, लिखें. -संपादक]
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