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बाल मुक्तक- डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’

4 years ago
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●ख़ूब ठहाके लगाती है

1. नटखट है पर भोली है
मिश्री जैसी बोली है
डूबी है वह रंगों में
दिनभर खेली ,होली है

2. घर में धूम मचाती है
ख़ूब ठहाके लगाती है
देख बड़ों को इतराते
मिश्का भी इतराती है

3. भय ये मन में किसका है
डॉगी डर से खिसका है
कौआ बोला बिल्ली से
भागो आई , मिश्का है

 


●कवि संपर्क-
●7974850694

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