कविता आसपास : •विजय पंडा
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●वीर पुत्रों को नमन
-विजय पंडा
[ घरगोड़ा, रायगढ़, छत्तीसगढ़]
मन मेरा क्षुब्ध है !
वह
कायर, मन मष्तिष्क से विक्षिप्त हैं
हमारे अपने रक्षकों पर
शाँति भक्षकों ने पुनः
पीठ पर ही वार किया
खूनी नरसंहार किया।
ढाल बन सैनिक डटे रहे
रेखा पर वीर अड़िग रहे ;
शौर्य से वीरता की गाथा लिख
हुँकारते नाग सदृश फुँफकारते
बाजू उनके जो फड़के थे
दहाड़ कर ही वो गरजे थे।
रण भूमि में ललकारा था
देश का वह रखवाला था।।
“मातृ भूमि की जय”
गगनभेदी से
शहीद होना प्यारा था।
आज
प्रकृति काँप उठी !
बहते
अश्कों की अविरल धारा
जन – जन में छलक उठी।
भारत माता क्रंदन करते
आगोश में लिया
वीर शहीदों का
पुनः जयघोष हुआ।
विलापित करता मन
हर ह्रदय आज क्षुब्ध है ;
सर्वस्व लुटाकर वो
लिख गए कहानी।
निराकार नही होगी
शहीदों की कुर्बानी।।
●विजय पंडा
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