■कविता आसपास – •झरना मुख़र्जी
●बस मुट्ठी भर बताशा.
-झरना मुखर्जी
अंतर्मन में दबी हुई
एक चीख सुनाई देती है
फरियादों के खिड़की से सुन
बस मौन सुनाई देती है
कुछ धुंधली सी तस्वीरें हैं
कुछ यादों का मंज़र है
बाहर की दुनिया देखें तो
कुछ भीड़ दिखाई देती है
जो देर तक छा जाता है
फिर पलकों पर आ जाता है
तितली उड़ने लगती है
ख्वाबों को बुन लेती है
कुछ बारिश में बह जाते है
कुछ फूलों सी खिल जाते है
जीवन के खेल तमाशे में
बन वानर ही रह जाते हैं
कुछ रंगों की परिभाषा है
कुछ उड़ने की अभिलाषा है
कभी उड़ कर भी गिर जाते हैं
कभी गिर कर फिर उठ जाते हैं
हर बाधा जब पार करे तो
मुश्किलें घुटने पर आते है
इतनी चुप्पी क्यों साधे
अंतर्मन को क्यों बांधे
कुछ कहना है मुंह खोलो ना
मन की बातें अब बोलो ना
जो आया है उसे जाना है
किस बात की हताशा है
बांट लो कुछ मीठी भाषा
बस मुट्ठी भर बताशा है।
[ ●झरना मुखर्जी की देश के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित होते रहती है. ●प्रकाशित पुस्तकें- ‘कवितम्बरा’ ‘काव्य सरिता’ ‘काव्य प्रहरी’. ‘पूर्व वान्य साहित्य पत्रिका’. ]
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