■कविता आसपास ●मीता अग्रवाल ‘मधुर’.
4 years ago
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●नवगीत
-मीता अग्रवाल ‘मधुर’
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
नित पसारे पाँव बैरी
मौन घाती पर खदेड़े
ज्वार भाटा सिंधु तट पर
राहु ग्रसता जग लतेड़े।
व्याधियों का दंश घातक
लीलता जीवन सुहाना
राग छेड़े काग कड़वे
विषधरो का गीत गाना
टूटती अभिलाष गगरी
आ रहा मानव सपेड़े।
भोर ही फैली उदासी
व्योम पंछी तार टूटे
बंद ताले रह घरों में
जीव के व्यापार छूटे
काल गति सीमा सभी तय
जीव जग नाविक थपेड़े।
लौट आई फिर घड़ी वह
श्रम मनुज गाथा कहानी
भाव बैठी गोद गहरी
देर खिलती रात-रानी
काठ की नौका पुरानी
आज लहरों को उधेड़े।
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