ग़ज़ल- •दिलशाद सैफी
●जीते तो हमसब मिल,
विजय पताका लहरायेंगे,
हारे तो एक इतिहास बनके,
पन्नों में रह जाएंगे.
-दिलशाद सैफी
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
फिर देखो इतना गंभीर संकट गहराया
हलक में अटकी सांस प्राण घबराया
एक दर्द को लिए हुए सहमा है हर कोई
रुका शहर कस्बा गाँव की हर गली-गली
मौत का समान लिए हुए एक हवा चली
चिख रहा संसार मगर सुनता नही कोई
हर तरफ पसरा सन्नाटा न कोई शोर है
सो गया लगता विधाता भी कैसा ये दौर है
कुदरत के बदन को छिला फल उसका पाया
देखो कुदरत ने भी बदले में कहर बरसाया
किसको दे दोष हम सब ही तो जिम्मेदार है
ये सब जान कर भी क्यों हम अनजान है
शोक संतप्त परिवारे अब और क्या देखे
आती घरों से शोर चित्कार दिल हिला दे
लाचार ये प्रजातंत्र है और खुश नेता गण
सत्ता की लालसा में इस कदर हो मगन
झोंक दिये इंसानों के प्राण तिनके की तरह
किस कदर लगे देखो कुर्सी बचाने की होड़ में
लगता है अब तो कोई रक्षक रहा न बाकी
आगे बढ़कर लेना होगा खुद को जिम्मेदारी
ये अदृश्य लड़ाई है प्रकृति और मानव के बीच
जिंदा रहे तो देखेंगे किसकी होगी इस बार जीत
जीते तो हम सब मिल विजय पताका लहरायेंगे
हारे तो एक इतिहास बन के पन्नों में रह जाएंगे..।