■रचना आसपास – •डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
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●हिन्दकी-कबाड़ी है
-डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ कोरबा-छत्तीसगढ़ ]
जौहरी की जगह कबाड़ी है
नासमझ धूर्त है , अनाड़ी है
बातें करता है रोज़ सागर की
झाँककर देखिएगा हाँड़ी है
लोभ देता है छाँव देने की
पेड़ का भ्रम है,सिर्फ़ झाड़ी है
तीली होता हवन के कामाता
कुछ नहीं है वो एक काड़ी है
शान से बैठता है अब जिसपर
ठुक चुकी है, पुरानी गाड़ी है
लोग पर्वत जिसे समझते हैं
लुत्प होती हुई पहाड़ी है
एक दिन हम सभी को जाना है
काल के हाथों में सुपाड़ी है
हाँड़ी – मिट्टी का घड़ा
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