■कविता आसपास : •वीरेंद्र पटनायक
●माँ
-वीरेन्द्र पटनायक
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है।
स्वाद की जादूगरनी
सलाहकार-सी डॉक्टरानी है।।
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है। …..
ममत्व की परिभाषा वह
जीवन का आधार है,
श्रृंगार संग सुह्रद सजाती
हथेली में दुलार है।
क्लेश देती नहीं
आचमन अश्रुजल महारानी है,
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है ।।1।।
स्वप्नदर्शी आप अनागत की
शिक्षा सृजन सहकारी,
विषम बेला सर्वदा
दुर्गा चंडिका महतारी।
तुनकमिज़ाजी कभी नहीं
निर्णय सहज जुबानी है।
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है ।।2।।
माँ है तो सब मुमकिन
होली भांगड़ा रमज़ान,
मन की बात ऑंखों से
पढ़ लेती संज्ञान।
कर्ज चुका सकते नहीं
त्यागी तपस्वी बलिदानी है ।
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है ।।3।।
कैकई सा जन्म न लेना
यशोदा मरियम बने रहना,
विधिसम्मत नतमस्तक हैं हम
राजा-रंक धर्मांतर न नयना।
जात-पात सह संसेचन नहीं
वसुधैव कुटुम्बकम कर्माणी है।
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है ।।4।।
संवेदनाएं अहसास हो तुम बचपन की मनुहार हो तुम,
स्मृति-संसार बसे संकटमोचन देवदूत भी तुम।
नसीहतें अब समझ आई माँ वाकई जटाजिनी है।
“माँ” एकाक्षरी शब्द ही नहीं
अथाह कहानी है ।।5।।
[ भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत वीरेन्द्र पटनायक छायाकार औऱ रचनाकार भी हैं. ]
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