■मया के बोली भाखा : •दुर्गेश सिन्हा ‘दुलरवा’
●मन मयूरा तड़पे बनके चिरइया
-दुर्गेश सिन्हा ‘दुलरवा’
[ छुरिया बंजारी,छत्तीसगढ़ ]
मन मयूरा तड़पे बनके चिरइया।
अपने देश म रावण भेष म,
घुमाथे नारी मनके लुटईया।
मन के लुटईया।
दस मुड़िया रावण पाछु होगे अब तो।
एक मुड़िया मानव आघु होगे अब तो।
पापी के पाप ले सीता जिहां रोवे
देख जटायू जिहां निंद भर सोवे।
-मंदिर बनत हे, अयोध्या में।।2।।
फेर कहां हे राम वो आँसू के पोछईया।
हमर आँसू के पोछईया।।
मन मयूरा तड़पे बनके………
अब तो मरय नही रावण,
भले आजही संगी आंखी ले सावन।
जब तक नई आही बनवासी राम,
कहा हे कोंख अइसन पावन।
कौशल्या कोन छत्तीसगढ़ म,
कहा हे दाई कोन करजा के छुटईया।
करजा के छुटईया
मन मयूरा तड़पे बनके चिरइया…
कब तक चुप बइठे रहिबे।
दुनिया के जम्मो ह दुख ल तय सहिके।
आशा लगाये आहि धनुरधारी राम।
अही गिरधारी बनवारी कहिके।
-कोन्हों नई आवय आघु कब तक रहिबे पाछु।।2।।
बनना हे दुर्गा तोला, (काली तोला) पापी के मरईया।
अइसन पापी के मरईया।।
मन मयूरा तड़पे बनके चिरइया।
अपने देश म रावण भेष म,
घुमाथे नारी मनके लुटईया।
मन के लुटईया।
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