■रचना आसपास : •डॉ. पीसी लाल यादव.
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●धनबहार
-डॉ. पीसी लाल यादव
[ गंडई, छत्तीसगढ़ ]
मुस्कावत हवय धनबहार,
अंग भर ओरमाये घुंघरू।
सोन-सोन के गहना पहिरे,
का नई लागत होही गरु ?
आवत-जावत रेंगइया ला,
ओहा करत रहिथे जोहार।
कहिथे-“मन ले मन मिला,
सुनव संगवारी के गोहार।
मया ले बड़का ये जग म तो,
अउ का जिनीस होही भला?
अंतस म बइठे हवय मयारु,
तेखर का हवय तुहँला पता?”
जोर मारय जब पुरवाही ह ,
तब सोन घुंघरू झर जावय।
हलु-हलु तब कलेचुप सऊंहे,
पिरीत – दिया ह बर जावय।
पातर-पातर लरी ओरम के,
धीरे – धीरे फर मन भोगाथे।
अनपुरना के डेहरी म तभे ,
कोठी-ढोली म ठऊर पाथे।
काया हवय कंचन तब तो,
गुन घलो ओइसनेच चाही।
बिना गुन के धन – परसादे,
कईसे कोनो ह मान पाही?
●कवि संपर्क-
94241-13122
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