■कविता आसपास : •अमृता मिश्रा.
●तीसरा प्रहर तो नहीं ?
-अमृता मिश्रा
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
तीसरा प्रहर
समय चक्रवत सा
निरन्तर है चलायमान
और उसकी परिधि पर
क्रमवार दिवा- रात्रि का आगमन..
सुना है हर रात्रि की
सुबह जरूर होती है
और वर्षों से उस सुबह के
इंतज़ार में हूँ मैं..
तमाम आशाएँ आकांक्षाएँ
उम्मीदों को संजोए
काट रही मैं आँखों में
रात्रि का तीसरा प्रहर …
शायद अब दिखाई दे
किरण भोर की.
कर्ण मेरे सजग हैं सुनने को ….
पक्षियों के कलरव
आंखें निररन्त
निहारती हैं पूरब को
शायद दिखाई दे
सूर्य की लालिमा
प्रकृति का नियम
कभी नहीं झूठलाता
रात के बाद दिन
अवश्य आएगा
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ…
मेरी आँखों से छिपते-छिपाते..
सुबह कब आई कब गई
पता ही नहीं चला…
मुझे तो लगता है
रात्रि का तीसरा प्रहर
जहाँ का तहाँ ठहरा है
और रात का अंधेरा
पहले से और अधिक गहरा है
कहीं ये मेरे जीवन रात्रि का
तीसरा प्रहर तो नहीं……??????
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