■ग़ज़ल : •डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
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●ग़ज़ल- ग़म नहीं होगा
-डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ कोरबा-छत्तीसगढ़ ]
शम्मा से दूर रहोगे तो ग़म नहीं होगा
फ़िजूल आग में जलने का भ्रम नहीं होगा
यकीन मानिए कल ऐसा वक़्त आएगा
सुकून के लिए इक भी हरम नहीं होगा
तबाह हो चुके आशिक कई ज़माने में
ज़िगर का दर्द दवाई से कम नहीं होगा
सिखाया करते हैं अब लोग लूटने का गुर
करोगे इश्क़ किसी को हज़म नहीं होगा
शहर में कोई फ़रिश्ता रहा नहीं ‘नवरंग’
बचे हुए हैं जो उनमें रहम नहीं होगा
●लेखक संपर्क-
●79748 50694
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