■स्तम्भ : नवोदित रचनाकार. •श्रीमती सुभद्रा कुमारी.
●अकेले रह गये
-सुभद्रा कुमारी
चेहरे पर खुशी देखकर
कभी आईने भी बिखर गये,
आंखों से जो आंसू टपके
सारे अरमान जाने किधर गये ।
जिंदगी की राह में जो था बिश्वास
एक मोड़ पर न जाने क्या हो गये,
वक्त नहीं मिला सम्हलने का
उलझती गई इस उलझन में
संबंधों की तुरपाई जाने कहाँ खो गये।
मेरे दिल के आईने में देख लो जरा
तस्वीर आज भी साफ़ है,
माना मेरी जुबां तल्ख है
पर कौन समझे मेरी नियत पाक है।
एक दर्द जो सीने में लेकर जी रही हूँ
किससे करुं बयां बस आंसू में बह गाये,
सोचे थे सभी साथ होंगे मेरे
पीछे मुड़कर देखती हूँ हम अकेले रह गये।
【 श्रीमती सुभद्रा कुमारी नवोदित कवयित्री है, पिछले कई वर्षों से कविता लिख रही हैं. एमकॉम,बीएड सुभद्रा कुमारी सम्पूर्ण रूप से गृहणी हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ ग्रुप नवोदित रचनाकारों को हमेशा प्रोत्साहित कर रहे हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ की इस कड़ी में नवोदित कवयित्री सुभद्रा कुमारी की रचना ‘अकेले रह गये’. रचनाकार अपने जीवन के अनुभवों और दर्द को अपनी रचना के माध्यम से उकेरने की कोशिश की है. सुभद्रा कुमारी की कोई भी रचना आज़ तक किसी भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हुई है, उनकी पहली रचना पाठकों/वीवर्स के समक्ष प्रस्तुत है,कैसी लगी लिखें. – संपादक● ]
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