■छत्तीसगढ़ी रचना आसपास. •दुर्गा प्रसाद पारकर.
●कोलिहा कथा :
-दुर्गा प्रसाद पारकर
[ भिलाई-छत्तीसगढ़.]
रूख म बइठ के
मिट्ठू ह मैना ल
कोलिहा कथा सुनावत रिहिसे
मैना कथे – कइसन कथा ?
मिट्ठू कथे – सुन कका !
कोलिहा ह
चिटरा ल बतावत रिहिसे
मँय राजा तो नइ हवं
फेर
राजा ले कम घलो नइ हवं |
चिटरा पुछथे –
राजा बदल जही त कइसे करबे?
काकर घर के
हवँला म पानी भरबे ?
कोलिहा कथे –
राजा कोनो दल के बनय
भाषण लिखवाये बर तो
उमन ल
मोरे करा आना हे,
मोला काकरो ले
कुछु लेना – देना नइ हे
मोला तो
अपन स्वारथ साधना हे |
जइसन – जइसन राजा
ओइसन – ओइसन
टेटका कस रंग बदल लेथँव,
कोनो दूसर राजा आ गे ताहन
ओकर अउ ओकर दाई – ददा के
आत्मकथा लिख देथँव |
हरबोलवा कस
मोर हुँवा – हुँवा म अतना दम हे
चाहँव ते सरकार बदल दवं,
मोर बात ल जउन ह नइ मानै
ताहन
ओकर विरोध म
हुँवा – हुँवा कहि देथँव |
कोलिहा कथे –
कब तक ले चारन भट्ठ कस
राजा मन के गुन ल गावत रहूं?
अब राजा के चमचा के बदला
करछुल काबर नइ बनहूं ?
जंगल के राजा ह
कोलिहा के गोठ ल
सपट के सुनत रिहिसे
राजा ह
अपन कुर्सी ल खतरा म देख के
कोलिहा के टोटा उपर
झपट्टा मार के किडनैप करिस
चिटरा ह डर के मारे
अपन बिला म खुसर गे ,
इंकर चक्कर म
अपन
बी पी एल के राशन कार्ड ल
बचाये बर
कोलिहा के हुंकारू दे बर बिसर गे |
कोलिहा हुँवा – हुँवा करे बर
छोड़ के
राजा के सरनागत हो गे
राजा किहिस –
तँय ह राजा बने के
सपना ल छोड़
मोर संग
अपन नाता ल जोड़ |
तोला कोलिहा आयोग के
अध्यक्ष बनाहूं
मँय तोला पद देवत हवँ
तँय मोला अपन बिरादरी के
वोट देवाबे ,
गरती के रसा ल तँय चुहक
अउ
गोही ल
भुलवार के अपन
बिरादरी ल खवाबे |
बाहिर वाले मन बर
दुनो झिन अलग – अलग
गुट के अन
फेर अंदर ले एक हन
हाथी ल गुरू बना के
ओकर ले कुछु सीख
खाये के दांत अलग
अउ
देखाये के दांत अलग कस
तहूं ह
भीतर ले कुछ
अउ
उपर ले कुछ अऊ दीख |
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