■रचना आसपास : •विजय पंडा
3 years ago
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●बहती तटिनी
-विजय पंडा
[ घरघोड़ा, रायगढ़-छत्तीसगढ़ ]
पुरातन समय के
यादों स्मृति को लिए
बहती तटिनी
चलती निर्झरिणी अबाध ,
मीठे जलों से सिंचित
तटों में ,जड़ों में
मानव में
तृप्तता का कराती आभास।
शैल मार्ग रोधित करे
जल कल – कल ; पल – पल
आभाषित कर
निश्चल निर्भाव
मार्ग चयनित करे।
लक्ष्य नही
विशाल जल समूह में
खो जाना , मिल जाना ;
एकाकार क्षितिज तक
विशाल आलम्बित ह्रदय
यही मेरा अस्तित्व।
मृग नभ चर सदृश
उछलती फुदकती
मन तन निर्मल सा
न मन मे विद्वेष पाले
गाँवों में – लोगों में
खेतों में – वनों में
अमृत स्नेह सिंचित कर
अभिमान मुक्त मन मेरा
सजल सृजन निश्चित है
धरा गगन का ,
यही ध्येय है मेरा ।
अव्यक्त ! मौन ! अनवरत !
यही पहचान – यही गुणगान
न करूँ आराम – न अभिमान।
चिर मंगल भावना से
बस ; बढ़ते ही जाना है।।
●कवि संपर्क-
●98932 30736
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