■ कविता आसपास : •सरिता गुप्ता ‘आरजू’.
●सूखे पत्ते
-सरिता गुप्ता ‘आरजू’
[ घरघोड़ा, रायगढ़-छत्तीसगढ़ ]
पतझड़ के सूखे वृक्षों में
कभी हरीतिमा भी छाई थी।
फूलों कलियों संग तितलियाँ
इन पेड़ों पर भी मंडरायीं थीं.।।
विलग हो गयी अपनी टहनी से,
अस्तित्व मिटाकर मिली मिट्टी में।
बढ़ा के मिट्टी की पोषकता
अपना कर्तव्य निभायी थी।।
आसमान से बरसी मेघा की
बूँदे मोती बनकर ;
छवि निखारी थी पत्तों की
यूँ मानो श्रृंगारित कर ।।
फूलों – पत्तों से झुकी डालियाँ,
इतराती – इठलाती थीं।
हवा के झोंकों संग मिलकर,
संगीत रागिनी गाती थीं।।
दूर राह चल थका पथिक भी
छाँव तले सुस्ताते ;
अनगिनत पंछी शाखों पर,
तृण तृण रोज जुटाते थे।।
ठूँठ बन चुके इन पेड़ों में
हरियाली मुस्काती थी।
फूलों – कलियों संग तितलियाँ
इन पर भी मंडराती थीं।।
अफ़सोस नहीं पर इन पत्तों को,
मिट्टी में मिल जाने का,
नये अंकुर बन फिर फूटेंगे,
बगिया फिर से सजाने को।।
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