डॉ. बलदाऊ राम साहू की दो रचना.
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●जब बादर ..
जब बादर छाथे जी
आसमान मा जब-जब बादर छाथे जी
मोर नाचथे, मेंचका ह नरियाथे जी।
सुरुर – सुरुर चलथे पुरवाही उत्ती ले
रुख-राई मन मुड़ी गजब डोलाथे जी।
हरियर हो जाथे भुँइया के कोरा हर
चिरई-चिरगुन सुग्घर गीत सुनाथे जी।
मगन हो के बाबू मन खेलथे खुडुवा
नोनी मन ला फुगड़ी गजब सुहाथे जी।
झिमिर-झिमिर जब पानी परथे भुँइया मा
तब किसान मन हँसते अउ मुसकाथे जी।
●कच्चा ओकर जी कान हवे
मुँह मा जेकर मुस्कान हवे
जिनगी ओकर आसान हवे।
मैं-मैं, मैं-मैं, जउन कहत हे
खुद ले ओहर अनजान हवे।
राग-पाग ल जउन नइ जाने
कइसने ओहर किसान हवे।
थोरकुन नइ मया दीखय जी
सिट्ठा ओकर पकवान हवे।
चिंता जग के जउन करत हे
सिरतो उही हर भगवान हवे।
पर के बात जउन पतियाथे
कच्चा ओकर जी कान हवे।
●कवि संपर्क-
●94076 50458
chhattisgarhaaspaas
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