इस माह की कवयित्री : •पूनम पाठक.
-पूनम पाठक
【 इस्लामनगर, बदायूं,उत्तरप्रदेश ]
●जाग मुसाफिर
जाग मुसाफिर =
हे जाग मुसाफिर
यह मानवता तेरे हाथ में
यह दुनिया तेरे हाथ में
यह रिश्ते तेरे हाथ में।
हे जाग जगत प्राणी
यह प्रकृति तेरे हाथ में
यह चांद तेरे हाथ में
यह सूरज तेरे हाथ में।
हे जाग जग निर्माता
सब प्राणी तेरे हाथ में
सब कृषि तेरे हाथ में
सब 4G 5G तेरे हाथ में।
हे जाग विज्ञान पुत्र
अब धरती तेरे हाथ में
अब नदियां तेरे हाथ में
अब जंगल तेरे हाथ में।
हे जाग अब मृग
सत्य मार्ग तेरे हाथ में
है अहिंसा तेरे हाथ में
है प्रेम भी तेरे हाथ में।
हे जाग कुंभ वर्तन
संस्कृति तेरे हाथ में
कुरान बाइबल तेरे हाथ में
गीता गुरु ग्रंथ तेरे हाथ में।
हे जाग मुसाफिर
जग जीवन तेरे हाथ में
जो चाहे होगा जन साथ में
बचा मानवता बाकी बाद में।
●युवाओं के सपने
युवाओं के सपने=
टाई बेल्ट और जूतों में शिक्षा
ऐसी शिक्षा को साकार करो।
जैसे बहुत जरूरी है शिक्षा
रोजगार को अब साकार करो।
काम करके बहाएं पसीना
युवाओं के श्रम का मान करो ।
लटकी तलवार रोजगार पर
ऐसी नीति पर तो मार करो ।
दस दस घंटे का श्रम करना
दो घंटे का पैसा मजबूर हुए।
बेरोजगारी की कर दो हत्या
युवाओं के सपने धूल हुए ।
युवा जब कमजोर हो जाएंगे
कैसे देश को तब बचाएंगे ।
आजाद होने से लाभ है क्या
जब देश अपना है बिक रहा ।
आवेदन करना भी कठिन हुआ
हर जगह रिश्वत मुंह लगा हुआ ।
श्रम कर सकता है युवा पर
युवा को काम मिलता न पर।
दस लाख पर सौ नियुक्ति
बार-बार फिसलती नियुक्ति ।
देश में राजाओं कुछ सोचो
विकारों की चटनी मत घोटो ।
टाई बेल्ट और जूतों में शिक्षा
ऐसी शिक्षा को साकार करो ।
●न भोज कराना
न भोज कराना =
दादा बूढ़े हो चुके थे
कोरोना बढ़ गया था
दादा को मनाही थी
टेलीवीजन देखने की
वह अखबार न पढ़ें
पढ़ेंगे मौत के आंकड़े
पर दादाजी क्या करें
हर वक्त क्या माला जपें
जब कुछ वह पूछते
सब ठीक है सुनते
अब कैसे टीवी खोला
वह तो क्या क्या बोला
सब गड़बड़ चल रहा है
मानव सिलेंडर पर जी रहा है
वे बड़े ही झल्लाये
क्यों मुझे पाबन्दी थी
टीवी से अखबार से
क्या कोरोना हो जाएगा
घर वालों को फिक्र उम्र की थी
काया अब कमजोर हो चली थी
सब छोड़ दादा बाहर आए
कुर्सी पड़ी कुर्सी पर बैठे
कुछ दूर नीम का पेड़ निहारा
बस यही पेड़ बचा है बेचारा
और पछता रहे थे वह
अपने पुराने बाग पर
भाई बेटों ने कटवा दिया
अब कोई भी पेड़ न बचा
नया बाग मुश्किल होगा
पर कुछ तो करना होगा
अब दादा ने परिवार बुलाया
और सब को यह समझाया
मेरे मरने पर न भोज कराना
वादा करो एक बाग लगाना
जो सबको ऑक्सीजन देगा
तुमसे वह कुछ तो न लेगा
ऑक्सीजन का यह हाल हुआ
दो हजार इक्कीस बदनाम हुआ
सुनो सुनो तुम भूल न जाना
धरती को वृक्षों से सजाना
मेरा बाग मेरा बाग
इसके बाद न आई आवाज
सभी रोने चिल्लाने लगे
सबने बाग का प्रण किया
अचानक चमत्कार हुआ
क्यों रो रहे हो बोले दादा
सभी चुप हो गए
दादा को पानी दिया
दादा अब ठीक थे
अब सांस ले रहे थे
अगले दिन खेत में
पौधे लगाए गए
दादा अब खुश थे
जिंदगी के दिन बढ़े।
कितना सुन्दर यह बाग होगा
हमारा भारत खुशहाल होगा