रचना आसपास : •दुर्गा प्रसाद पारकर.
●नचकार
-दुर्गा प्रसाद पारकर
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
अंतस म पीरा धरे
दुनिया ल
हंसवाने वाला नचकार
बस दू कौंरा भात बर
रात भर लोगन मन ल हंसवाथे
पीरा के सागर ल पी के
लोगन मन ल हंसवाये के नाटक
सिरिफ नचकार ही ह कर सकथे |
स्वामी विवेकानंद ह कथे –
मँय ओ भगवान ल नइ मानँव
जउन ह
जीते जी रोटी तो दे नइ सकय
अउ
मरे के बाद स्वर्ग के सपना देखाथे
तभे तो
कलाकार ह भगवान ल पूछथे
मोला मरे के बाद नही
जीते जी स्वर्ग कते मेर हे
तेकर पता बता दे
एक झिन नचकार के
जवान बेटा के लास ह
घर म माड़े रिहिसे
तभो ले
नचकार ह नाचे बर गे रिहिसे
ओह जानत रिहिसे
कि
बेटा के मँय इलाज पानी तो
नइ करवा सकेंव
फेर
बिहनिया नाच के आहूं
तब तो
जउन पइसा मिलही
ओकर ले
बेटा ल ओढ़ाये बर
कफन तो ला पाहूं |
कलाकारी के दुख ल
मदन ह बिक्कट भोगे रिहिसे
तभे तो सम्मान समारोह म
केहे रिहिसे
फूल के माला ले
पेट नइ भरय साहब
ए माला ल तँय पहिर
कलाकार मन बर
भर पेट भोजन के बेवस्था कर दे
मँय उधारी कोनो ल
नइ माँगत रेहेंव
मँय तो
सिरिफ कार्यक्रम मागँत हवँ
ताकि
दू रुपिया आ जतिस ते
मोरअसन
अभागा कलाकार के
जवान बेटा कस अउ काकरो
अपतकाल मौत नइ होतिस
जऊन कलाकारी ले
जब
परिवार के पेट नइ भर सकँव
त अइसनो सउँख ह का काम के
आज ले मँय कलाकारी ले
सन्यास लेवत हवं
अउ
सब कलाकार ल चेतावत हवं
सिरिफ पोरोगराम के
भरोसा झन राहव भइया हो
पेट बर
दूसर अऊ बूता करव
नही ते
हर कलाकार ल
अभाव म
अपन
कोनो न कोनो ल गवाँय बर परही
कलाकारी के नसा म
झवाँय बर परही
अपन पीढ़ी ल
कलाकारी के रद्दा म झन रेंगवाबे
ए रद्दा म कांटा अब्बड़ हे
कलाकारी म
तपस्या जबर हे |
भगवान ले बिनती करव
कि हे भगवान!
कलाकारी के हूनर
कोनो ल झन देबे
रोटी के जुगाड़ बर हूनर देबे
ताकि
दू वक्त के
रोटी के जुगाड़ कर सकव
इलाज बर पइसा सकेल सकव
इही मोर बेटा बर
सही श्रद्धांजलि होही
जे दिन
कलाकार अभाव म नइ मरही |
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