■रचना आसपास : •गोविंद पाल.
●टूलकिट [व्यंग्य]
-गोविंद पाल
[ भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
सत्ता की खेल खेलते रहो
करते रहो मौत पर भी धंधा,
कौन अपनो को खोया
कौन सड़क पर आया
किस किसका घर उजड़ा
उन्हें क्या फर्क पड़ता है
किसके गले में पड़े फंदा।
लक्ड डाऊन चल रहा है
एक कदम धरना नहीं पांव बाहर,
आदेश हैं सरकारी
कितना भी मुसीबत आये
या कितने भी टूट पड़े
तुम पर कहर।
कान पकड़कर उठक बैठक करवायेंगे
जमकर करेंगे कुटाई,
तुम लोग बहुत भोले हो
समझते नहीं हो
उनका सात खून माफ है भाई।
चुनावी रैली में कोरोना?
हो ही नहीं सकता!
इफ्तार पार्टी में कोरोना?
हो ही नहीं सकता!
किसान आंदोलन में कोरोना?
हो ही नहीं सकता!
हां तुम्हारे बूढ़े मां-बाप,
दादा – दादी के लिए
अगर लेने जाओगे दवाई,
तब तो तुम सरकारी नियम को
तोड़ रहे हो भाई
पुलिस की छोड़ो
कलेक्टर भी कर देंगे तुम्हारी कुटाई।
तुम लोग तो हो सिर्फ आम जन
तुम्हारे जीवन भी कोई जीवन?
शादी, ब्याह और तुम्हारी खुशी, उत्सव आनंद से
फैल सकता है भाई कोरोना
इसलिए सबकुछ आज से है बंद,
क्या बोले! चुनाव! वो कैसे न हो
चुनाव तो होना ही है
यही तो नेताओं का नृत्य और छंद।
फिर चुनाव जीतने के बाद
रैली निकालना, हुडदंग करना
मारना पीटना, दंगा करना
ये सब उनकी
अभिव्यक्ति की है आजादी,
उनका क्या कहना
वे नेता, मंत्री व्ही आई पी है
उनको कुछ नहीं होने वाला
क्योंकि उनकी वर्दी जो है खादी।
दुकान पाट, सब्जी भाजी
हाट-बाजार सब बंद होना चाहिए
ये सब है सरकारी कानून,
पर शराबियों के लिए
अन लाईन घर घर पंहुचे दारू
देखो!
सरकारी महकमे में कितना है जुनून।
तुम कवि लोग कुछ समझते नहीं
बेमतलब के करते हो खिटपिट,
वे कुछ भी कर सकते हैं
उनके पास है तरह-तरह के टुलकिट।
[ ●बाल रचनाकार के रूप में ख्यातिलब्ध कवि गोविंद पाल की नई रचना ‘टूलकिट’ आज़ ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के पाठकों/वीवर्स के लिए प्रस्तुत है. ●कैसी लगी,लिखें.
-संपादक ]■
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