■रचना आसपास : •डॉ. बलदाऊ राम साहू.
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●चौमासा आ गे
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
[ दुर्ग,छत्तीसगढ़ ]
करिया बादर आवत हे, चौमासा आ गे।
मेचका मन नरियावत हे, चौमासा आ गे।
खुडवा खेलत हावै जम्मो मछरी मन हर
टिटहरी गीत सुनावत हे, चौमासा आ गे।
कइसन गरम लागत हवे करसा के पानी
पांखी धूल नहावत हे, चौमासा आगे।
खोर-गली मा लइका खेले छिपीर-छापर,
बाबा आल्हा गावत हे, चौमासा आ गे।
हाँसत-कुलकत रेंगत हे, संगी-जँवरीहा,
मोहिनी मोर लजावत हे, चौमासा आ गे।
मेचका=मेंढक, नरियावत हे=आवाज़ दे रहे हैं, खुडवा=कबड्डी जैसे एक खेल, मछरी=मछली, करसा=कलसा, पांखी=पक्षी, रेंगत हे =चल रहे हैं,
●कवि संपर्क-
●94076 50458
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chhattisgarhaaspaas
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