■कविता आसपास : •शाश्वत
[ ●परिचय :
•शिवसेन जैन ‘संघर्ष’, ‘शाश्वत’ लेखकीय नाम. •शहडोल-मध्यप्रदेश निवासी ‘शाश्वत’,सेवानिवृत्त आयुर्वेद चिकित्स. •प्रकाशित संग्रह- ‘साझा काव्य संकलन’,’दोहा संग्रह’,के अलावा आकाशवाणी शहडोल से काव्य रचनाओं का प्रसारण. •विशेष कार्य- ‘शब्द चेतना विषय पर मौलिक शोध कार्य, अभी अप्रकाशित. •’छत्तीसगढ़ आसपास’ के पाठकों/वीवर्स के लिए ‘शाश्वत’ की पहली कविता ‘फ़र्क’ प्रस्तुत है, कैसी लगी लिखें● -संपादक. •कवि संपर्क- 88395 80891 ]
●फर्क
-शाश्वत
[ शहडोल-मध्यप्रदेश ]
भुनसारे सूरज की रोशनी में
आप नहायें / न नहायें
इस से सूरज की रोशनी को
क्या फर्क पड़ता है ?
रात्रि चाँदनी रात को देख कर
आप खिलखिलायें /न खिलखिलायें
इस से चाँद को क्या
फर्क पड़ता है ?
किसी गुलाब को देख कर
आप मुस्करायें /न मुस्करायें
इस से टहनी पर खिले गुलाब को
क्या पड़ता है ?
आप अंधेरी रात में
अपने धर आंगन में दीप
जलायें / न जलायें
इस से दीप को
क्या फर्क पड़ता है ?
आप बसंत के आगमन की
प्रतीक्षा में अपनी पलकें
बिछायें न बिछायें
इस से बसंत को
क्या फर्क पड़ता है
आप अपने शव्दों को
गीतों की माला बनायें / न बनायें
इस से गीत को
क्या फर्क पड़ता है ?
आप प्रेम में किये गये वादे
निभायें /न निभायें
इस से प्रेम को
क्या फर्क पड़ता है
लेकिन हाँ फर्क पड़ता है
हम सभी को इन
शाश्वत मूल्यों को
न अपनाने से
स्वयं के लिऐ स्वयं का
दर्पण न बन जाने से ।
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