■कविता आसपास : •अर्चना मिश्रा.
●स्त्री
-अर्चना मिश्रा
[ बरेली-उत्तरप्रदेश ]
हमेशा मुस्कुराऊं ,
कोई खिलौना तो नहीं।
हमेशा प्यार से बोलूं ,
कोई कॉलर टोन तो नही।
कभी जिद न करूं,
बचपना अभी मरा तो नहीं।
हमेशा वक्त की पाबंद रहूं,
घड़ी का अलार्म तो नहीं।
कोई कमी न हो ,
मैं कोई खुदा तो नहीं।
तुमसे आकर शिकायतें करूं,
मैं तुमसे जुदा तो नहीं।
हमेशा सजी रहूं,
सजावटी सामान तो नहीं।
दया दृष्टि पर जी लूं,
मरा अभी स्वाभिमान तो नहीं।
कुछ भी सुन लूं।
खामोश दीवार तो नहीं ।
अपने मन का न करूं,
बेजान तो नहीं।
खुद को भूल जाऊं,
फालतू सामान तो नहीं।
सबके हिसाब से ढल जाऊं,
खोई मैने अपनी पहचान तो नहीं।
[ ●अर्चना मिश्रा रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली में प्रवक्ता के रूप में पदस्थ हैं. ●कविता, कहानी एवं गद्य साहित्य का निरंतर लेखन,मंचों पर काव्य पाठ, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए पहली रचना. -संपादक ]
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