■एक ग़ज़ल दिल से. -लतीफ़ खान ‘लतीफ़’.
आस्तीनों में अगर साँप न पाले होते !
शहर में तेरे कई चाहने वाले होते !
तुमने बदला ही नहीं अपना नज़रिया वर्ना,
तुम ज़माने में यक़ीनन् ही निराले होते !
हार फूलों के अगर होते तेरे हाथों में,
लोगों के हाथ में ये तीर न भाले होते !
हमने ग़ुरबत में भी बेची नहीं ग़ैरत अपनी,
वरना इन हाथों में सोने के निवाले होते !
मंज़िलों तक न पहुँच पाते मुसाफ़िर यारों,
पाँव से मैं ने जो काँटे न निकाले होते !
उनके कहने से अगर रात को दिन कह देता
मेरे घर में भी उजाले ही उजाले होते !
आप जो होते मेरे चाहने वालों में ‘लतीफ़’
अश्क आँखों में न होंटों पे ये नाले होते !
[ ●हिंदी, उर्दू, छत्तीसगढ़ी लेखन में सिद्धहस्त लतीफ़ खान ‘लतीफ़’ दल्लीराजहरा, छत्तीसगढ़ से हैं. ●’लतीफ़’ जी की विधा-गीत,ग़ज़ल, नज़्म, रुबाई, दोहा,चौपाई,मुक्तक एवं क्षणिकाएं हैं. ●’लतीफ़’ जी सलीम अहमद’जख़्मी’,बाला देवी और सिब तैन भण्डारवी को अपना उस्ताद मानते हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के शुभचिंतक ‘लतीफ़’ जी की यह दूसरी ग़ज़ल पाठकों के लिए प्रस्तुत है, पढ़ें और लिखें,कैसी लगी. -संपादक ]
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