■ग़ज़ल : डॉ. अमर पंकज.
3 years ago
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●मौत से चाहे तुम डर लो,मैं अपनी बात कहूंगा.
●जिसको जो करना है कर लो,मैं अपनी बात कहूंगा.
-डॉ. अमर पंकज.
[ दिल्ली विश्वविद्यालय ]
मौत से चाहे तुम सब डर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा,
जिसको जो करना है कर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा।
जीवन भर देखे हैं सपने मिथ्या या सच चाहे जो हों,
सुख सपनों का भी गर हर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा।
सतयुग त्रेता या द्वापर हो भिक्षाटन करता आया हूँ ,
कलि मल से तुम ही घर भर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा।
सुरसरि कितनी लाशें बहतीं तेरी धाराओं में बोलो,
सुधि उनकी कुछ बहने पर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा।
बीहड़ पथ पर दिन रात ‘अमर’ चलना होगा सच की ख़ातिर,
जीते जी चाहे तुम मर लो मैं तो अपनी बात कहूँगा।
[ ●गाज़ियाबाद, उत्तरप्रदेश के डॉ. अमर पंकज की पहली रचना ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए. ●अपनी राय से अवगत कराएं. -संपादक] ■
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