■कविता आसपास : •तारकनाथ चौधुरी.
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●पावस पथिक
-तारकनाथ चौधुरी
[ चरोदा-भिलाई-छत्तीसगढ़]
अंजान देश के तुम हे पथिक!
पावस ठहरो इस धाम तनिक!
तपते जब तन-मन तपती धरा
हो जाती कृश तन वसुंधरा
अन्तर्यामी से तुम ओ पथिक,
सुन पाते कैसे कथा-व्यथित?
अंजान देश के तुम हे पथिक
लेकर हाथों में अस्त्र-तडि़त,
आते हो तुम तब सैन्य सहित
सुनकर गर्जन नृप ज्येष्ठ भी
हो जाता भीत से काल कवलित
अंजान देश के तुम हे पथिक
अनुराग मही से जन्मों का,
पावन बंधन सत्कर्मों का
करते हो प्रमाणित प्रिय पावस
चहुँदिशि बरस हर्षित-हर्षित! अंजान देश के तुम हे पथिक
कर अंत सभी दुःख धरती का,
दे भेंट हमें हरियाली का,
इक बार कहो!इक बार कहो!
कहाँ चल देते हो तुम हे पथिक
अंजान देश के तुम हे पथिक!
●कवि संपर्क-
●83494 08210
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