■पुस्तक समीक्षा : ‘युद्धवीर’. •कवि-भूषण चिपड़े. •समीक्षक-गोविंद पाल.
■काव्य संग्रह-‘युद्धवीर’.
युवा कवि भूषण चिपड़े ने मुझे उनकी काव्य संग्रह युद्धवीर मुझे भेंट किया था, समय निकाल कर जब उसको मैंने पढ़ा तो यही सोच रहा था कि आधुनिक शिक्षा पद्धति से शिक्षा प्राप्त एक युवक जो खुद एक सी ए है उनको हमारी भारतीय संस्कृति सनातन धर्म ग्रंथों के बारे में इतनी बारीक ज्ञान है देखकर मैं सचमुच आश्चर्यचकित हूँ, क्योंकि आजके आधुनिक शिक्षा प्राप्त हमारे नब्बे प्रतिशत युवाओं को हमने देखा हमारे धर्मग्रंथों के बारे में जरा सा ज्ञान नहीं है भले ही रामायण महाभारत के कितना भी टी वी सीरीयल क्यों न देख लें। दरअसल हमारे धर्मग्रंथों में जो मानवीय मुल्यों का व्याख्या जो दिया गया है उसको समझने के लिए बहुत ही कुशाग्र और बारीक नजरिए की जरूरत पड़ती है। भूषण चिपड़े जी द्वारा रचित युद्धवीर काव्य संग्रह में जो मुझे स्पष्ट परिलक्षित हुईं है।
मैं भूषण जी द्वारा रचित युद्धवीर के संदर्भ में दो चार बातें कहना चाहूंगा कि –
भूषण जी ने महाभारत के पात्रों के विभिन्न चरित्रों को काव्यात्मक छंदों में इस तरह ढालने का प्रयास किया है जो समसामयिक परिदृश्यों पर एक नई चिंतन है। इसमें प्रतिज्ञावद्ध भीष्म की विवशता को बखूबी काव्यात्मक विश्लेषण किया गया है । उदाहरण के लिए कर्ण और भीष्म के संवाद में कवि लिखते हैं –
सुनकर ब्रह्मज्ञान की बातें
कर्ण ने मन में साहस भरा,
पूछा भीष्म से ऐसा था तो
तुमने युद्ध क्यों लड़ा।
मान लिया दुर्योधन ने
हठ में युद्ध करवाया था,
पर तुमने तो वाण चलाकर
अधर्म का साथ निभाया था।
कहा भीष्म ने
हे! सूर्यपुत्र तुमसे बेहतर
कौन समझेगा प्रण हमारा,
राष्ट्र धर्म और धर्म
अगर विरूद्ध हो जाये
तो अधर्म के साथ रहूंगा
यही तो था प्रण हमारा।
कवि ने महाभारत के प्रारंभ और उसकी परिणति का मुख्य किरदार भीष्म को मानते हुए कहता है –
भीष्म ही योद्धा,
भीष्म ही संत थे।
भीष्म ही आरम्भ
भीष्म ही अंत थे।
भीष्म ही पांडव,
भीष्म ही कौरव थे।
भीष्म अकेले ही संपूर्ण,
महाभारत का गौरव थे।
कवि ने कर्ण के चरित्र में इस बात को कहने सफल हुआ कि कर्ण जीवन भर अपमान का घुट पीकर भी अपने मित्र धर्म को निभाते हुए अंतिम क्षण तक मित्रता की कसौटी पर खरे उतरे। पंक्तियां देखिए –
जाते जाते मित्र – पुत्र वह
मित्रता करना सिखा गया।
पता था मित्र हारेगा ही
फिर भी साथ निभा गया।
जयद्रथ वध, कृष्ण के चरित्र तथा कृष्ण- द्रोपदी संवाद आदि में कवि ने जितने प्रसंगों का वर्णन युद्धवीर काव्य संग्रह में किया हैं बहुत ही छोटे छोटे सधे हुए शब्दों में पिरोया है जो कबिले तारीफ है। जो बहुत ही सहज सरल और वोधगम्य भाषा में लिखी गई है। पाठक पढ़ते आनंद की अनुभूति करेंगे। मुझे आशा है भूषण जी के यह काव्य संग्रह युद्धवीर पाठकों को पसंद आयेगी। क्योंकि यह पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है।
【 ●कवि भूषण चिपड़े संपर्क-99936 26669. ●समीक्षक गोविंद पाल संपर्क- 75871 68903. 】
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