■कविता आसपास. ■विद्या गुप्ता.
●कला की कसौटी पर.
-विद्या गुप्ता.
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]
चित्रकार
तुम्हारी तूलिका
ब्रह्मा की तरह बसा देती है
कागज पर एक पूरी दुनिया
सागर के सीने पर
फैलती लहरें
आकाश का नीलापन
पंछी की थकान
फूलों की हंसी
भींगे यौवन की उष्मा
भिखारी की
पसलियों में धंसी भूख तक
कागज पर उतार लाती है
तुम्हारी तूलिका
तुमने ही
रहस्यमय सौंदर्य में डुबाई
मोनालिसा की मुस्कान
चित्रकार
पत्थरों का मौन तोड़ती
तुम्हारी तूलिका
क्यों नहीं तोड़ पाई
तुम्हारी हथेलियों के क्रॉस….!!
खिचड़ी बालों में अटका
उम्र का अंतराल
मौन हो जाता है
आईने के सवाल पर
कला का वर्तमान
नहीं दे पाया
कांपती पसलियों को कंबल
पेट के आकाश को रोटी
काली चाय पीकर
रंग भरती कला
कराह उठी
कैनवास के मूल्य पर
चित्रकार
जीवन की संध्या से पहले
जरूर बना देना
एक चित्र
अपने चेहरे का
जिस पर माला चलाती
जयंती मनाती आंखें
छू सके अपनी रगों में
तुम्हारे भोगे हुए दर्द का स्पर्श
पढ़ सके
तुम्हारी उम्र के शेष रहे
सालों का हिसाब
एक पल
तुम्हारे साथ जीते हुए
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