■मुंबई के अशोक कुमार ‘नीरद’ की दो ग़ज़लें.
●1 हम अद्यतन हुए तो पैमाने नये आये
फिर खाली हाथ उसकी महफ़िल से चले आये
सुनते ही बात अचरज से भर गये हैं यारो
बाज़ों की सल्तनत में बसने को लवे आये
ये ख़ूब है सियासी दरबार लगा जिसमें
कोई न पारसा है सब दाग़ लगे आये
फरियाद लेके अपनी जो पास गये उनके
अहवाल है ये उनका अच्छे से नपे आये
किन- किन को दें दिलासे बेज़ार हुए सब से
दौलत लुटे गये तो अब दिल के लुटे आये
करनी थी जो तबाही करके वो गयी दुनिया
बाक़ी को लूट लेने अब अपने सगे आये
तय है सफ़ेद की ये लुटिया ही डुबा देंगे
उसके वकील बनकर ‘नीरद’ हैं तवे आये
【 ●अघतन-अप टू डेट ●लवा-एक छोटी सी चिड़िया 】
●2 बेचकर ईमान अपना घर सजाने के लिए
ख़ूब कसरत हो रही बिगड़ी बनाने के लिए
कुछ दुआओं के भी सिक्के तू कमा ले बावरे
ये ही इक थाती है तेरे साथ जाने के लिए
बोल कड़वे बोल कर बर्बाद होने वाले सुन
जीभ का उपयोग कर अमृत लुटाने के लिए
प्यार, नेकी, अपनापन, सद्भाव, करुणा, सादगी
झ्तनी दौलत है बहुत जीवन चलाने के लिए
छेड़ता हूँ मैं प्रभाती , छेड़ तू आसावरी
भोर होता प्रेरणा के राग गाने के लिए
ज़िंदगी संघर्ष का अनिवार्य है बस सिलसिला
कोई गुंजाइश नहीं बचती बहाने के लिए
आचरण से जग नहीं जीता तो ‘नीरद’क्या किया
क्या लिया है जन्म गिरने और गिराने के लिए
गिरह
है अगर जीवित तो फिर ज़िंदादिली से मुस्करा
ज़िंदगी होती नहीं आँसू बहाने के लिए
【 ●अशोक कुमार ‘नीरद’,12 वर्ष की उम्र से लेखन में हैं. ●जन्मस्थल बुरहानपुर मध्यप्रदेश और शिक्षा सागर विश्वविद्यालय से ●अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों,मुशायरों और गोष्ठियों में निरंतर सक्रिय. ●ग़ज़ल संग्रह- ‘जुगनू को सूरज का भ्रम’, ‘ग़ज़ल के स्वर’ और एक गीत संग्रह ‘विश्वास का सवेरा’. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में अशोक कुमार ‘नीरद’ की पहली ग़ज़ल हमारे पाठकों एवं वीवर्स के लिए.
-संपादक 】
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