■लघुकथा : ■तारकनाथ चौधुरी.
♀ अहिंसक प्रतिहिंसा
♀ तारकनाथ चौधुरी
[ चरोदा-भिलाई, जिला-दुर्ग,छ. ग. ]
दूसरे सरकारी अधिकारियों में विद्यमान अवगुणों की तरह बिसेसर की संस्था के प्राचार्य में भी वो समस्त दोष सहज परिलक्षित था।उनके कोप का चाबुक अक्सर बिसेसर की पीठ पर ही पड़ता,क्योंकि उन्हें लगता कि बिसेसर उनकी कारगुजारियों को स्टाफ मेंबर्स और कैंपस के बाहर विषाणु-संक्रमण की तरह फैलाता है।ये बात सच भी थी कि बिसेसर की सूचनाओं के आधार पर ही कई बार उनके विरूद्ध शिकायतें हुईं किन्तु सत्तासीन मंत्रियों के तलुओं की धूल अपनी जीभ से साफ करने के प्रतिफल वे अंगद की तरह ही संस्था में जमे रहे और बिसेसर पर अपनी सख्ती को तीव्रतर करते रहे।
पंद्रह किलोमीटर दूर से साइकिल चलाकर, रोज़ समय पर अपने कर्तव्य-स्थल पर पहुँचने वाला बिसेसर, बडा़ हँसमुख और किसी भी काम को करने के लिए उद्यमी स्वभाव का था किंतु प्राचार्य महोदय के अपशब्दों और अमानुषिक आचरण से अत्यंत परेशान और दुःखी रहता थात्रबिसेसर।
प्राचार्य,सरकारी आवास में अकेले ही रहते थे,इसलिए बिसेसर को संस्था के साथ-साथ साहब के घर का काम भी करना पड़ता था।
साहब के दुर्व्यवहार से तंग आकर एक दिन जब बिसेसर ने उनके घर का काम करने से इंकार कर दिया तो अगले दिन साहब ने बिसेसर के हाथ, दोपहर दो बजे से रात दस बजे तक ड्युटी करने का आदेश थमा दिया।
आदेश के वज्राघात से घायल बिसेसर की विनती को ठोकरोंं से कुचलकर प्राचार्य दीपावली अवकाश पर प्रतापगढ़ चले गये।
बिसेसर की आय पर टिका परिवार का हर सदस्य, उसके साहब के इस असंवेदनशील व्यवहार पर जी भरकर असंवैधानिक शब्दों का ज़हर उगला।बिसेसर की पत्नी ने कहा-“तोला रात म बने दिखै नहीं,तैं झन आबे अँधियार म,बडे़ फजल आ जाये करबे,नौकरी त छोड़ नइ सकस।”
पत्नी को जहाँ बिसेसर की चिंता थी,वहीं बिसेसर को उसकी दो साल की बिटिया की फिक्र थी जो उसके बगै़र सोती नहीं थी।
परिस्थिति से साम��
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