■महेश राजा की तीन लघु कथाएं.
【 ●26 फरवरी को जन्में महेश राजा की अबतक 2 पुस्तकें ‘बगुला भगत’ और ‘नमस्कार प्रजातंत्र’ प्रकाशित हुई. ●’कागज़ की नाव’ प्रकाशधीन. ●महेश राजा की रचनाएं गुजराती,छत्तीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी, मलयालम, मराठी औऱ उड़िया में अनुवादित. ●55 लघुकथाएं रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर के शोध प्रबंध में शामिल. ●कनाडा से ‘वसुधा’ के अलावा भारत की हर छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में निरंतर प्रकाशित. ●आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन में भी प्रसारण. 】
♀ अभी-अभी
बेटा बाहर से आया था तो भूखा था।आते ही बोला- ‘माँ कुछ खाने को दो न।’
मां ने सारा काम छोड़ कर रोटी और साग परोस दिया।
इकलौता बच्चा था।वे अकेली थी।सिलाई-बुनाई कर अपना व बेटे का पेट पालती थी।
बेटे को जोर की भूख थी ।वह खाता गया।वह स्नेहमयी नजरों से बेटे को भोजन करते देखती रही।यहाँ तक कटोरदान की अंँतिम रोटी भी उसे परोस दी।सब्जी तो पहले ही समाप्त हो गयी थी।
अचानक बेटे को कुछ याद आया, बोला’-माँ …तुमने खाया कुछ ?’
वे तंद्रा से जागी , बेटे को देखा और झटपट बोली- हाँ… खाया न बेटा…-..अभी..अभी…।
♀ नैतिक मूल्य
हमारे एक मित्र गिरते हुए नैतिक मूल्यों के प्रति चिंतित है।
मुझसे कहने लगे-आजादी के बाद नैतिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ गयी है!कल कचहरी गया था।मुझे अपनी जमीन की नकल लेनी थी।पटवारी ने कहा-अभी नक्शा कम्प्यूटर सेक्शन मे गया है।वहां से आ जायेगा तो आपको नकल बना दूंगा।
मैंने पूछा,कब तक आयेगा?
पटवारी ने कहा भ ई सरकारी कम्प्यूटर है,इसलिये कितना समय लगेगा।यह मैं नहीं बता सकता।
फिर मित्र ने आगे बताया कि मैंने पटवारी से कहा,कि मुझे मकान बनवाने के लिये बैंक से कर्ज लेना है……बिना नक्शे के यह संभव नहीं होगा,इसलिये और कोई रास्ता हो तो बताये।पटवारी ने रास्ता बता दिया और मैनें उसे तीन सौ रूपये नक्शा बनवाने हेतू दे दिया।
कहने का मतलब यह था कि पटवारी स्तर के सरकारी कर्मचारियों के नैतिक पतन का मूल्य तीन सौ रूपया है।
इसके बाद और भी राजस्व विभाग के क ई अफसर है,जिनके नैतिक मूल्य गिरे है।फिर उन्होंने लगभग सभी सरकारी विभागों मे गिरते हुए नैतिक मूल्यों की विस्तृत चर्चा की।
कुछ दिनो के बाद मुझे अपने भाई साहब के नये निवास मे टेलीफोन लगवाना था।पता चला वे मित्र ही यह सैक्शन देखते है।मैं प्रसन्न हो गया।मैने आवेदन भर कर उन्हें दिया और कहा कि भाई साहब के मकान का गृहप्रवेश एक सप्ताह बाद है।मैं चाहता हूँ।गृहप्रवेश के पूर्व फोन लग जाये।
मित्र बोले,यह तो अत्यंत खुशी की बात है.पर,अभी सर्किल वाले ने ईंस्टु्मैंट की सप्लाई रोक दी है।आ जायेंगे तो सबसे पहले आपके नये घर में लग जायेगा।
मैंने,पूछा,कितने दिन लग जायेंगे।
वह बोले,-सरकारी काम है..कितने दिन लग जायेंगे यह बताना मुश्किल है।
मैने कहा,-और कोई विकल्प?
वह बोले.,बड़े साहब से बात करनी होगी।
मैने हँसते हुए पूछा,-बड़े साहब के नैतिक मूल्य किस रेट तक गिरे हुए हैं?
वह बोले-“आप हमारे मित्र हैं……आप से कोई ज्यादा थोड़े ही लेंगे।”
♀ दूरियां
द्बितीय लाकडाउन का पंदरहवाँ दिन था।घर पर आटा समाप्त हो गया था।पिछली बार पैकेट वाला आटा लाये थे तो रोटियाँ अच्छी नहीं बनी थी,तो इस बार गेंहूँ लेकर आये थे।
पत्नी ने धूप दिखा कर एक झोले में भर दिया,साथ ही बड़ी वाली पन्नी भी दी थी।जैसे ही बाहर निकले पड़ोस के विनोद जी ने पूछ लिया,कहाँ जा रहे है?बताने पर वे फिर बोले-‘”उन लोगों की आटा चक्की पर मत जाना,समझ गये न,आज कल कोई भरोसा नहीं कौन क्या कर बैठे।”
अब वे हिचके।थोडी़ दूर गंजपारा वाली चक्की पर गये तो पता चला,वहां आटा मोटा पीसा रहा है।
अब वे हिम्मत कर अपनी पुरानी जगह बाजार चौक गये।दो तीन लोग ही थे।जैसे ही वे पहुंचे,चक्की वाले ने पूछा,-“बड़े दिन बाद आये साहब?”
उन्होंने बताया,हालात ही कुछ ऐसे है.आजकल किराने की दुकान से आटे की थैली ही ले लेते है।
उन्होंने एक उसाँस ली कहा-“आपसे कोई शिकायत नहींजनाब।काफी सारे लोग हमारे यहाँ नहीं आ रहे है।हम अलग जातिधर्म से हैं न साहब।पर क्या बताऊं कि पचास बरसों से हमारे बाप दादा यहीं के वाशिंदे रहे।यहाँ का नमक खाया।यहाँ की हवाओं में साँस ली
मेरा जन्म यहीं हुआ,बेटे का भी।आप तो हम लोगों को जानते ही है।पिछले तीस बरसों से आपके घरवालें हमारी ही दुकान पर आते रहे है।समय खराब है।कुछ लोगों की नासमझी से हम सब गुनाहगारों की श्रेणी में आ गये है जनाब।”
आसमान की तरफ ईशारा कर बोले-“अब तो इन्हीं का सहारा है।वे कुछ करें।वरना दिलों में तो दूरीयाँ आ ही गयी है।वे ही सबके गुनाह माफ़ करें,और जल्दी सब ठीक हो।”-वे हाथ जोड़े खड़े रहे।
आटा पीस गया था।पैसे देकर वे भरे दिल से लौट रहे थे ।उन्हें मलाल था कि उनके मन में भी कुछ ऐसे ही विचार आ गये थे,जो पड़ोसी के मन में थे।मन ही मन ईश्वर से क्षमा मांँगते हुए वे घर लौटे।
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