लघुकथा : डॉ. दीक्षा चौबे [दुर्ग छत्तीसगढ़]
🌸 काम पर
निर्माणाधीन इमारत में मजदूरी करती इमरती आज अपने चार वर्षीय बेटे दीनू को भी साथ ले आई थी । उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी तो घर पर अकेले छोड़ने का मन नहीं हुआ । बाकी दिन तो उसके घर पहुँचने तक मुहल्ले में बच्चों के साथ खेलता रहता था । सिर पर ईंट उठाते वक्त थोड़ा दीनू की तरफ देखकर आश्वस्त हो जाती और अपने काम पर लग जाती । बच्चे की बालसुलभ क्रीड़ाएँ माँ के ममतामयी हृदय को आनंद से विलोडित कर देतीं और उसकी सारी थकान दूर हो जातीं । जहाँ दीनू और दो-एक बच्चे खेल रहे थे जाने कहाँ से ऊपर से एक लकड़ी का पट्टा जोर से गिरा.. और इमरती की दुनिया वीरान कर गया । बुत बनी इमरती अपनी आँखों के आगे उजड़ती कोख देखकर पथरा गई । जिसके लिए काम पर आई थी , काम उसे ही निगल गया था।
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🌸 आँचल
पूरा मोहल्ला उसे बिलखते देख रहा था… राधा के पति एक लंबी बीमारी के बाद चल बसे थे….दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उसके सिर पर आ गई थी । न माँ – पिता , न कोई रिश्तेदार…. असहाय महसूस कर रही थी वह अपने – आपको । कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अब क्या करेगी , कैसे पालेगी बच्चों को… सोलह बरस में शादी हो गई थी , आठवीं पास को काम भी क्या मिलेगा… मजदूरी या कहीं झाड़ू – पोंछा ही करना पड़ेगा । लोगों ने मिलकर उसके पति का क्रियाकर्म कर दिया पर जीवितों का पेट भरने के लिए सब दुःख भूलकर उसे कर्म करना पड़ेगा ।वह निकल पड़ी थी दोनों बच्चों को लेकर …आसमान में काले मेघ छाये थे…मुसीबतों की तरह बूूँदें भी बरसने लगीं थीं..बच्चों के सिर पर अपनी साड़ी का आँचल तान दिया था उसने….ममता की यह छाँव सभी बारिशों पर भारी थी।
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