






लघुकथा : रौनक जमाल [दुर्ग छत्तीसगढ़]

इजहार, इंकार और वोह
कॉलेज को खुले हुए कुछ ही हफ़्ते गुजरे थे कॉलेज में नई-नई दोस्तीयो, इश्क व आशिकी का बाजार गर्म था मिन्हाज और शाजली इन कहानियों से दूर अपनी अपनी दुनिया में मगन थे- दोनों का ताल्लुक बड़े सनअ ती घरानो से था इसलिए हर कोई उनकी जानिब कदम बढ़ाने से पहले सौ-सौ बार सोचता था एक रोज़ शाजली मिन्हाज के करीब पहुँची और रसमी दुआ सलाम के बाद बोली मिन्हाज क्या हम दोस्त मेरा मतलब है हम जीवन साथी बन सकते है मिन्हाज ने शाजली. को सर से पाँव तक गौर से देखा और कहा’ ,शायद नही ! यह सुनकर शाजली मायूस होकर तेज कदमो से लौट गई उसी वक्त मिन्हाज ने कुछ सोचा और शाजली को आवाज देकर रोका और उस के करीब जाकर बोला चलो आओ खुश आमदीद मैं तुम्हारी मोहब्बत को कुबूल करता हूँ शाजली ने मिन्हाज के कलमात को गौर से सुना और मुस्कुराते हुए बोली नही अब इसकी जरूरत नहीं है आखिर ऐसा क्यों? अभी-अभी तो तुम वो ! जिसने तुम्हे मेरी मोहब्बत को कुबूल करने से रोक दिया था अब वो मुझे रोक रहा है कहकर शाजली आगे बढ़ गई.
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खिदमतगार
मई का महिना शदीद गर्मी के बाएस तारकोल की सड़कर भी पिघलने लगी
थी गरीबो का नंगे पैर घुमना मुश्किल हो गया था ऐसे मे वो बोरे मे भरकर नये पुराने जूते चप्पल लाता और कभी मन्दिर कभी मस्जिद
के सामने बाट देता शहर के बड़े-बड़े समाज सेवक उसकी इस समाजी खिदमत वो जज्बे को देखकर शर्म से पानी पानी हो जाते एक रोज मेने उससे पूछ लिया यह सब कैसे कर लेते हो वो लापरवाही से बोला मे क्या करता हूं यह तो सर्वोधर्म सेवा है मस्जिद से उठाता हूं मन्दिर के सामने बाँट देता हूँ मन्दिर से उठाता हूं मस्जिद के सामने बांट देता हूँ.
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[ कुछ शब्द का अनुवाद ऊर्दू का हिंदी में –
इजहार – बात कहना अपनी
इंकार – बात को ठुकरा देना
हफ्ते गुजरे – कुछ सप्ताह चले गए
मगन – अपने आप में खुश रहना
सनअती घराना – ऊँचे खानदानी परिवार से
जानिब – उस ओर पहुँचना
रस्मी दुआ – उसी वक्त दी जाने वाली दुआ
खुश आमदीद – किसी व्यक्ति का खुशी से स्वागत करने के लिए कहा जाने वाला शब्द है
कलामत – कुछ बात कहने को ध्यानपूर्वक सुने को कह जाता है
जरूरत – आवश्यकता. ]
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