कहानी, संकल्प- सरला शर्मा
संकल्प
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन है, धूप तेज तो नहीं है पर ठंड भी नहीं है स्वेटर साथ लेना पड़ा मां की जिद पूरी करने वैसे भी कल रात से ही अनवरत चेतावनी मिल रही थी झुंझला गई बिंदु…सभी मांये ऐसी क्यों होती हैं ? देखो पहली बार अकेली जा रही हो सावधान रहना किसी से बात मत करना, कहां जा रही हो, क्यों जा रही हो, कब लौटोगी यह सब बताने मत लगना, कोई कुछ देतो लेकर खाने मत लगना, डिब्बे में पूड़ी सब्जी है, चाय किसी अच्छी जगह पर ही पीना आदि इत्यादि…मुस्कुरा उठे ओंठ..सयानी लड़की अकेली यात्रा कर सकती है मां के लिए तो यह अकल्पनीय है, किस्से, कहानी,सिनेमा की बात…तभी तो आशंकित थी…कैसे समझाये बिंदु.. मां मैं इक्कीसवीं सदी की पढ़ी लिखी 22साल की लड़की हूँ।
बस कंडक्टर की आवाज से पता चला गन्तव्य पर पहुंच गई…धीरे धीरे भीड़ में रास्ता बनाते नीचे उतरी…एक पेड़ की छांव में खड़ी हुई चारों तरफ देखी..सामान्य सी जगह है..गांव से कस्बे में फिर तेजी से शहर में तब्दील होते चंद्रपुर को…हां यहीं आना था उसे..खरसिया, डभरा पार कर वैसे रायगढ़ से भी पास ही पड़ता।
पास ही चाय की गुमटी थी उसे देखकर लोगों ने जगह बना दी चाय वाले ने पूछा..हॉफ चाय दूं बहनजी ? इंकार में सिर हिला देने सेवो दूसरे ग्राहक से बात करने लगा बिंदु ने भी उसी सामान्य से पर शिक्षित दिखने वाले सज्जन से पूछा…यहां से बाजार किधर पड़ेगा भाई ? उत्तर मिला बाज़ार तो हफ्ते में एक ही दिन लगता है बुधवार को….
ओह! साप्ताहिक बाज़ार समझ लिया इन्होंने अबकी पूछी..नहीं भाई मुझे पुस्तकों की वो जो पुरानी दुकान है वहां जाना है…।
दस बारह साल के एक बच्चे ने तुरन्त अपनी जानकारी का प्रदर्शन किया..दीदी वहां अच्छी अच्छी नई किताबें नहीं मिलती..आप प्रकाश पुस्तक भंडार जाइये…पास में ही है।
बिंदु ने फिर प्रथम व्यक्ति से कहा…भाई मुझे जो पुस्तक चाहिए वह पुरानी पुस्तक दुकान में ही मिलेगी…सामान्य से व्यक्ति ने उत्तर दिया…मेरे साथ आइये मेरा घर उसी तिवारी पुस्तक दुकान के पास ही है…।बिंदु को मां की सावधानवाणी याद आई..किसी अपरिचित के साथ कहीं मत जाना…मन ने कहा बिंदु चलो.खुद पर भरोसा करो, दिन दोपहर को तुम डरोगी तो खुदको खोजने का, अपने को स्थापित करने का सपना पूरा कैसे करोगी ? चाय वाले ने कहा..बहनजी चले जाइये..जगदीश यहीं काबा शिंदा है ठीक जगह पहुंच जाएँगी…।
मानों अपनी चुनी रह पर पहला कदम रखा हो बिंदु ने…चल पड़ी…करीब एक किलोमीटर चलकर दाहिनी ओर मुड़े ही थे कि सामने ही पुरानी दुकान के फीके पड़ गये बोर्ड पर नज़र पड़ी..तिवारी पुस्तक भंडार…।
जगदीश ने कहा…लीजिये आपका गन्तव्य आ गया अब मैं चलता हूँ…मुड़ने को ही था कि ठिठक गया दुकानदार यानि तिवारीजी की बात सुनकर…बिटिया इस किताब की एक ही प्रति बची है उसे भी जगदीश ने सुरक्षित करवा लिया है…बिंदु असमंजस में पड़ गई, निराशा छा गई उसकी आँखों में..लम्बी सांस खींच कर बोली…तिवारीजी मैं जयरामनगर से इसी पुस्तक के लिए इतनी दूर आई हूँ ओह! अब क्या करूँ ?कम से कम देख तो सकतीहूँ..तिवारीजी के हाथ से पुस्तक लेकर उत्सुकतावश पन्ने पलटने लगी..काश यह मुझे मिल जाती.विनयपूर्वक बोली कृपया यह मुझे दे दें उनके लिए आप दूसरी प्रति मंगा दीजियेगा।
जगदीश को उत्सुकता हुई इतनी दूर से अकेली आई हैं कुछ विशेष प्रयोज नही होगा,पास आकर बोला..मेडम मैं ही जगदीश हूँ कहिये आपको छत्तीसगढ़ी साहित्य का ऐतिहासिक अद्ध्य्यन पुस्तक की जरूरत क्यों है ? थोड़ी उम्मीद जगी बिंदु के मन में उत्साहित होकर बोली..मैं बिंदु चौबे हूँ पी, एच.डी कर रही हूँ सन 1904 से1989 तक के छत्तीसगढ़ी साहित्य के बारे में जानकारी चाहिए जो इसी पुस्तक में मिलेगी।। जगदीश ने सोचा इसको जरूरत है मैं तो बाद में भी पढ़ सकता हूँ..
मुझे तो सिर्फ अध्ययन करना है बिंदु उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थी रुक नही सकी तो बोल पड़ी…मैं इसकी कीमत अभी ही दे दूँगी…ओह! पुरूषो चित अहम जाग उठा साथ ही यह भी कि पैसे का घमंड दिखा रही है लड़की…रूखे स्वर में बोला…पैसे का महत्व किताब से ज्यादा नहीं है मैडम दूसरी बात कि अपनी मांग नम्रतापूर्वकर खनी चाहिए…नाराज़गी को छुपाने का प्रयास नहीं किया जगदीश ने….।
बुरा लगा बिंदु को..ऊंह..बड़ा अध्ययनशील समझते हैं खुद को फिर कीमत दे तो रही हूँ..ये पढ़े लिखे लड़के क्या समझते हैं खुद को…नहीं चाहिये इनकी कृपा..कहीं और खोज लूंगी..थोड़ी उपेक्षा दिखाते हुए उसने पुस्तक तिवारी जी को नहीं सीधे जगदीश के हाथों में ही थमादी..।
कभी कभी पलभर में हमारे विचार बदल जाते हैं जगदीश अपवाद तो नहीं..उसके मुहं से निकला…मैडम पुस्तक आप रख लीजिए…मुझे तो इसको पढ़कर हमर बोलीडॉटकॉम में डालना है ता कि लोग हमारे छत्तीसगढ़ी साहित्य की उचित जानकारी पा सकें यह काम तो मैं बाद में भी कर सकता हूँ…थोड़ा रुका..बोझिलता कम करने हंसकरबोला…बशर्ते आप पुस्तक वापस कर्रें…।
पुस्तक पाने की ख़ुशी, जगदीश के प्रति कृतज्ञता, मां की चेतावनी सब मन पर हावी हो गये समझ नहीं आ रहा था कैसे धन्यवाद देपर चुपचाप पुस्तक ले लेना असभ्यता होगी सोचकर ही बोली…धन्यवाद..मैं इसे पढ़कर अवश्य वापस करूँगी बस अपना नाम पता बता दीजिए….
यह था जगदीश और बिंदु का परिचय पर्व…नियति मुस्कुरा रही थी..फिर क्या?पुस्तकों का आदान प्रदान कब मन के लेन देन में बदल गया दोनों को पता ही नहीं चला।मुश्किल खड़ी हुई जब दोंनों परिवारों ने इस रिश्ते को शादी का नाम देने से इन्कार कर दिया कारण कुलीनताबोध, अमीरी गरीबी आदि प रजगदीश बिंदु दोनों आत्मनिर्भर थे चंद्रसेनी मंदिर में विवाह कर लिए कन्यादान तिवारी जी ने ही किया।
एक नया घर बसा..प्रेम अपनी जीत मना रहा था कि बिंदु की डॉक्टर ने ख़ुशख़बरी दी घर में नये मेहमान के आने की…जगदीश खुश तो बहुत हुआ पर नई जिम्मेदारी की चिंता भी हुई शुभचिंतक तिवारीजी शाम को सपत्नीक घर आये आश्वस्त किये।देखते देखते अस्पताल जाने का दिन आ गया…शाम 7 बजे बिंदु ने गोलमटोल सुन्दर शिशु को जन्म दिया, बच्चे को आशीर्वाद देने दादा दादी आये तो नाना नानी पीछे क्यों रहते?
अदृश्य, भाग्य, भगवान, नियति चाहे जिस नाम से पुकारें यथा समय उपस्थित होता ही है व्यतिक्रम अब भी नहीं हुआ..बेटे के जन्मदिन के लिए पूरा परिवार चंद्रसेनी मंदिर के आंगन में उपस्थित था पुजारी जी ने बेटे प्रतीक के नाम से पूजा,आरती सम्पन्न किया ही था लोग प्रसाद लेकर पक्के चबूतरे पर बैठे ही थे कि बिंदु की चीख सुनाई दी…जगदीश सहित कई लोग दौड़ पड़े…बिंदु की गोद में प्रतीक थामा थे से खून बह रहा था..हाँ बच्चा रो नहीं रहा था दादा ने कहा..मेरा पोता है बहादुर बच्चा है छोटी मोटी चोट से घबरा कर रोयेगाकैसे ?
नाना ने कहा पास ही दवाखाना है चलकर मरहम पट्टी करवा लेते हैं…डॉक्टर ने जाँचकर के बताया चोट अंदरूनी नहीं है पट्टी करवा लें दवा लिख देर हा हूँ..दादा चले गये पोते की मरहमपट्टी करवाने तब डॉक्टर ने पूछा बच्चे की चोट को किसने पहले देखा..बिंदु ने बताया उसीने पहले देखा था..अगला प्रश्न डॉक्टर ने पूछा..बच्चा चीख रहा था, रो रहा था या नहीं ? बिंदु घबरा गई जगदीश ने सहज उत्तर दिया नहीं डॉक्टर साहब प्रतीक चुपचाप था बल्कि अभी तक एक बार भी नहीं रोया है।
डॉक्टर ने कहा घबराएं नहीं..अभी तो घर जाइये ध्यान दें बुखार तो नहीं चढ़ रहा है पर कल अवश्य आकर बतायें की बच्चा कब, कितनी देर बाद रोया…। मेहमान तो घर चले गये पर बिंदु जगदीश आशंकित हो उठे..आखिर प्रतीक रोया क्यों नहीं, चोट लगने पर बच्चे का रोना स्वाभाविक है किंतु प्रतीक के क्षेत्र में यह अस्वाभाविकता क्यों ?
प्रतीक को बुखार तो नहीं चढ़ा पर रोया नहीं बिंदु जगदीश डॉक्टर के पास पहुंचे डॉक्टर ने प्रतीक को खिलौना दिया, चुटकी बजाकर हंसाने की कोशिश की पर वह निर्विकार रहा।जगदीश ने पूछा डॉक्टर कोई डरने की बात तो नहीं है।डॉक्टर गम्भीर हो गये बोले….अभी मैं कुछ नहीं कह सकता बच्चे को रायगढ़ के बालरोग विशेषज्ञ डॉ मखीजा को दिखादें फिर उनकी सलाह से आगे बढ़ेंगे पर जल्दी कीजिये….।
पति पत्नी चिंतित हो गये छुट्टी के लिए आवेदन देकर प्रतीक को डॉ मखीजा के पास ले गये…उन्होंने पूछा सामान्य बच्चे की तरह आप लोगों की बातों की, लाड़ प्यार की प्रतिक्रिया इस पर कैसी होती है ?
…बिंदु ने कहा..डॉ साहब प्रतीक गम्भीर बच्चा है हमारी बातें सुनता समझता है या नहीं हम ठीक से नहीं बता सकते अभी यह बोलना भी नहीं जानता….।समय पंख लगाकर उड़ता है चार महीने हो गये..एक दिन प्रतीक ने गर्म दूध की पतीली में हाथ डाल दिया..दूध फ़ैल गया बिंदु ने उसे गोद में उठा लिया हाथ को ठंडे पानी में डाला..अचानक ध्यान गया कि प्रतीक रो नहीं रहा है बल्कि भावहीन आँखों से हाथ को है..चीख पड़ी बिंदु…फफोले पड़ गये हैं तू रो क्यों नहीं रहाहै, दर्द से चीख क्यों नहीं रहा है बेटा…???
जगदीश भी आ पहुंचा बेटे का हाथ देखा फिर डॉक्टर के पास गये इस बार डॉक्टर ने कहा…जगदीशजी मुझे बच्चे के दिमागी विकास की गति पर शंका है डॉ मखीजा या अन्य किसी बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाएँ…यह अस्वाभाविकता का लक्षण है…।
इस अंचल में डॉ मखीजा बाल मानसिक विकलांगता के ख्याति प्राप्त डॉक्टर हैं फिर वहीं पहुंचे पर इस बार दोनों पति पत्नीआशंकित थे, डरे हुये थे…।आवश्यक परीक्षण के बाद डॉ मखीजा ने समझाया…
…किसी भी बच्चे के दिमागी विकास के दौरान होने वाला विकार है यह जो जन्मजात होता है बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ साथ इस अस्वाभाविकता का पता चलता है जो एक से तीन साल की अवधि में पूरी तरह दिखाई देने लगताहै।ऑप्टिज्मया आत्मविमोह भी कहते हैं।
जगदीश ने पूछा…डॉ साहब इसके लक्षण क्या हैं ?
डॉ ने कहा…बच्चा पुकारने पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता, आँखों की दृष्टि ओजमयी नहींहोती।चोट लगने, शारीरिक पीड़ा होने पर भी सामान्य बच्चे की तरह रोता चीखता नहीं।
बिंदु ने पूछा..डॉ साहब यह होता क्योंहै ?
डॉ ने बताया…इस असामान्यता का कोई विशेष कारण अब तक चिकित्सा विज्ञान में नहीं पाया जा सका है फिर भी यह कहा जा सकता है कि गर्भावस्था के दौरान ही मस्तिष्कीय रसायन का असुंतलन,विकास की गति का धीमा होना ही मुख्य कारण है यह आनुवंशिक भी होताहै।
जगदीश ने कातर होकर विनती की…डॉ कोई तो इलाज होगा खर्च की परवाह मत करें?
सम्वेदना सूचक मुस्कान के साथ डॉ मखीजा ने बताया..यह अब तक लाइलाज़ बीमारी है किन्तु सही प्रशिक्षण, धीरज के साथ बच्चे को सामाजिकता से परिचय कराएं यदि ऐसे बच्चेमंदबुद्धि हैं तो आजीवन मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक होती है।बच्चे को अकेले न रहने दें उसकी सम्वेदनशीलता को जगाते रहें, यदि वो एक ही क्रिया को बार बार दोहराता है या अनजाने ही शरीर के किसी अंग का संचालन निरन्तर करता है तो उसका ध्यान हटाएं..।
बिंदु रोने लगी किसी तरह जगदीश ने उसे संभाला…घरआ गये..बात फैलते देर नहीं लगती तो लोगों को बातें बनाते भी देर नहीं लगती..कल तक जिस बच्चे के जन्म कीखुशियां मनाई जाती रही थी अब सुनाई पड़ने लगा मनमर्जी की शादी, न जन्मकुंडली मिलाई,न रीति रिवाज पूरे हुये, देवता पितर का कोप है ऐसा बच्चा…। बिंदु का रोना सह नहीं पाता था जगदीश पर लोगों का मुंह बंद करने का कोई उपाय भी तो नहीं था।
प्रतीक ने दो साल पूरे कर लिये डॉक्टर के बताये लक्षण अब स्पष्ट दिखाई देने लगे..नौकरी दोनों की थी कितनी छुट्टी मिलती ? परेशानी बढ़ती जा रही थी अब तो प्रतीक गुस्सा करने लगा था कभी कभी बिंदु या जगदीश को दांत से काट देता।
एक शाम बिंदु स्कूल से आकर खूब रोई…प्रिंसिपल ने ज्यादा छुट्टी के लिए खूब सुनाते हुये कह दिया प्रतीक तो सुधरने से रहा उसे तो हमेशा देखभाल की जरूरत होगी क्यों नहीं आप नौकरी का मोह छोड़ बच्चे के पास रहकर उसकी देखभाल करतीहैं ???
जगदीश सुनता रहा..बिंदु तो सो गई पर जगदीश के लिए यह निर्णायक रात थी।सुबह को तो होनी ही थी..बिंदु से उसने कहा हम दोनों में से किसी एक का प्रतीक के पास रहना जरूरी है किसी को तो नौकरी छोड़नी होगी…बात पूरी नहीं हुई थी कि बिंदु बोल पड़ी…ठीक है मैं आज ही त्यागपत्र दे दूँगी..।
हंसकर जगदीश ने कहा..तुम क्यों त्याग पत्र दोगी..स्त्री ही हमेशा त्याग, सेवा, बलिदान करे यह जरूरी तो नहीं है..नौकरी मैं छोडूंगा..प्रतीक के साथ रहूंगा..।
बिंदु के यह कहने पर कि लोग क्या कहेंगे फिर आप घर बैठकर समय कैसे बितायेंगे ?
जगदीश ने उत्तर दिया घर पर कम्प्यूटर सेंटर खोलूंगा यह काम मेरी रुचिका भी है,अनुभवी भी हूँ फिर सहायक रख लूंगा वैसे भी कम्प्यूटर सेंटर में दिन भर भीड़ नहींरहती।बीच-बीच में प्रतीक को भी देखता रहूंगा..आने जाने वालों से प्रतीक मिलता जुलता भी रहेगा याद नहीं डॉ मखीजा ने कहा था प्रतीक को सामाजिक बनाना है अकेलापन उस को सामान्य व्यवहार करने नहीं देगा…थोड़ी नानुकुर के बाद बिंदु ऱाज़ी हो गई…। जगदीश ने आगे कहा हमें प्रतीक से सामान्य व्यवहार करना है आओ बिंदु हम संकल्पलें कि प्रतीक को असामान्य नहीं रहने देंगे।