विजया दशमी विशेष, रावण दहन- महेश राजा, महासमुंद, छत्तीसगढ़
रावण दहन
दशहरे का पावन पर्व ।शाम को रावण दहन का कार्यक्रम था।
हर वर्ष बच्चों को लेकर रावण भाटा जाना होता था।इस बार पडौस के एक समाज विशेष के सज्जन और बेटी साथ चल पड़े।
कार्यक्रम की समाप्ति पर रावण के बडे से पुतले का दहन किया गया।वापसी में उस बच्ची ने अपने पापा से पूछा,-“पापा,हर साल रावण को क्यों जलाया जाता है?फिर अगले बरस वह पुनः जीवित हो जाता है।”
उस बच्ची के पापा धबराये,कहीं कोई नाराज न हो जाये।ईशारे से बच्ची को चुप रहने को कहा।
साथ के व्यक्ति ने बताया-“बेटा रावण को बुराई का प्रतीक माना गया है।राम जी मर्यादा पुरूषोत्तम थे।उनके द्वारा रावण का वध हुआ था।इसे परंपरा के रूप में हर वर्ष मना कर बुराई का अंत करते है।”
अबोध बच्ची ने यह सुन कर कहा,-“जलाना ही है तो आपस की लडाई, अहम ,गरीबी,महंँगाई और अस्वच्छता रूपी रावण को जलाया जाये। साथ ही महामारी का खात्मा किया जाये।निरीह पुतले को जला कर क्या लाभ?”
बच्ची की बात सबको भीतर तक छू गयी।पर किसी के पास इसका जवाब न था।सब चुप रहे।
वातावरण में शोर था।आकाश में आतिशबाजी हो रही थी।
यह घटना पिछले बरस की है