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लघु कथा, मन-मयूर – विक्रम ‘अपना’, नंदिनी-अहिवारा,छत्तीसगढ़

4 years ago
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मन-मयूर
(लघुकथा)

अखिल ब्रह्मांड के एकमात्र पुरुष, घनश्याम, प्रकृति राधा के साथ रासलीला कर रहे थे। सांय-सांय कर चलती हवा के झोंके, उनके बांसुरी की मीठी तान प्रतीत हो रही थी।
जंगल के पेड़-पौधे, जीव सभी मदमस्त थे। मयूर का मन-मयूर झूम उठा। उसने हर्षातिरेक में अपने पँख खोल लिए और मोरनी के आगे बेसुध होकर नृत्य करने लगा।
अचानक ही मोर-मोरनी जाल में फँसकर छटपटाने लगे। शिकारियों ने उन्हें छल से जाल में कैद कर लिया था।
पहले तो उन आदिमानवों ने मोर के तन को उसके सुंदर पँखों से अनावृत कर दिया। फिर दोनों को पकड़कर बेच दिया।
अगले दिन वही मोर पँख लगाए एक इंसान मोर बनकर नृत्य कर रहा था। उस इंसान को नाचते और तड़पकर मरते हुए मोर को देखकर मोरनी ने प्रश्न किया।
क्या इन पाषाणों के दिल नहीं होते?
क्या इनका मन-मयूर नहीं नाचता?

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