लघु कथा, गोल-गोल रोटी – नीलम जायसवाल, भिलाई-छत्तीसगढ़
गोल-गोल रोटी
जूही को दुल्हन बन कर आए लगभग पांच साल हो गए हैं।ससुराल में पति, दो साल का बेटा सुयश, सास-ससुर के अलावा एक प्यारी सी ननद है,’खुशी’। जो की छोटी बहन से कम नहीं,थोड़ी चुलबुली और बहुत समझदार। जूही और खुशी की मित्रता देख लगता ही नहीं कि-वे ननद-भाभी हैं। किसी ने नहीं सुना कि आज तक दोनों में कभी तू-तू मैं-मैं भी हुआ हो,इतना प्यार है।
और हो भी क्यों न…! जब जूही ने ससुराल में पहला कदम रखा था, तब खुशी सोलह साल की थी। आज इक्कीस की होने तक, कितनी ही बार जूही भाभी ने खुशी को बड़े ही प्यार से संभाला है। चाहे वह किशोरावस्था की समस्याओं से जुड़े सवाल हों, या कॉलेज की कोई बात खुशी को मांँ से ज्यादा भाभी से सहयोग मिलता रहा है। और भाभी भी ऐसी, मानो उसके पास हर समस्या का हल है। और वह हरदम मदद को तत्पर रहती है।
खुशी भी साफ दिल की है,उसने हमेशा ही भाभी की खुले दिल से तारीफ की है। चाहे वह भाभी की साड़ी बांधने का तरीका हो, या मेकअप की बारीकी। खुशी को भाभी की हर बात अच्छी लगती है। भोजन भी तो वह कितना स्वादिष्ट बनाती है।खुशी अपनी भाभी की गोल-गोल रोटियों की तो मुरीद है। जूही ने जब इस घर में पहली बार रोटियाँ बनाई थी, तभी खुशी चीख पड़ी थी कि – वाह भाभी..! आप की रोटियाँ तो बहुत ही गोल-गोल बनती हैं। मुझसे तो थोड़ी, टेढ़ी हो ही जाती हैं। और माँ की रोटियाँ तो थोड़ी मोटी-मोटी और हाथों के निशान वाली होती हैं। उस वक्त जूही सिर्फ मुस्कुरा दी थी। पर आज भी खुशी, भाभी की गोल रोटियों की तारीफ करती नहीं अघाती। जूही कहती है- ‘खुशी’…! अब तो तुम भी बहुत अच्छी रोटियाँ बना लेती हो।… हांँ भाभी.! पर आपके जितना नहीं। आप की रोटियों की तो बात ही कुछ और है।
खुशी का ग्रेजुएशन पूरा हो चुका है। उसके पापा चाहते हैं, कि-कोई अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी करा दें, पर यह बात सुनते ही खुशी बिफर पड़ी। उसने कहा मैं जॉब करना चाहती हूंँ।शादी-वादी करनी होती, तो इतनी पढ़ाई क्यों करती। मुझे नहीं करनी शादी। इतना पढ़ लिख कर चलो दूसरे की गृहस्थी संभालो, हुंँह..।
माँ ने समझाने का प्रयास किया- बेटा शादी तो करनी पड़ती है, देखो तुम्हारी भाभी तो पोस्ट ग्रेजुएट है। पर वह भी तो शादी करके गृहस्थी संभाल रही है। ….नहीं माँ मेरे भी कुछ सपने हैं। और गृहस्थी संभालना भला किसी का सपना होता है..?….. खुशी अपनी ही कही बात पर ठिठक गई। … फिर कुछ सोचने लगी। और लपक कर अपनी भाभी के पास जा पहुंचती है।
भाभी…! भाभी आपने तो एम.काॅम किया है। क्या आप नौकरी नहीं करना चाहती थीं…? क्या आपके कोई सपने नहीं थे..? क्या आप हमेशा से सिर्फ एक गृहिणी बनना चाहती थी..? भाभी…! बोलो न….।
अब जूही की बारी थी। ‘खुशी’..! मेरी प्यारी बहना…! एमकॉम के बाद मैं भी करियर चुनना चाहती थी, पर मेरे माता-पिता मेरा विवाह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहते थे। उन्होंने कहा आजकल शादी के बाद भी नौकरी की जा सकती है। यदि ससुराल वाले चाहें तो। मैंने उनकी बात मान कर शादी कर ली। शादी के बाद तुम्हारे भैया से नौकरी करने की इच्छा जताई थी,पर उन्होंने मां की तबीयत, तुम्हारी पढ़ाई और घर की जिम्मेदारी की बात कही, तो मैंने नौकरी का ख्याल दिल से निकाल ही दिया। ….पढ़ाई करना अच्छी बात है। अपने करियर के बारे में सोचना भी ठीक है। पर इसके लिए शादी से मुंह मोड़ना कहाँ की समझदारी है। शादी करके गृहस्थी बसाना भी तो जरूरी है। …पर भाभी…! शादी के बाद मैं भी नौकरी न कर पाई तो..? चूल्हा चौका ही करना पड़े तो, इतने पढ़ने का क्या फायदा..? खुशी फिर बोली।
जूही ने मुस्कुरा कर कहा – ज्यादा पढ़े लिखे होने से रोटियांँ ज्यादा गोल-गोल बनती हैं। खुशी अपनी भाभी की ओर देखती है, दो पल शांति के बाद, दोनों खिलखिला कर हंँस पड़े-… हा हा हा- हा हा हा…।
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