करवाचौथ पर विशेष, औऱ चांद खिल उठा- महेश राजा, महासुमन्द-छत्तीसगढ़
बहुत शानदार जोडी थी,दोनों की।पति जी एक आफिस में अफसर थे।पत्नी जी एक स्कूल में अंग्रेजी पढाती थी।
जैसा कि आम दाम्पत्य जीवन में होता है,किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी।बातचीत बंद हो गयी।
आज करवा चौथ का त्योहार था।पत्नी जी ने व्रत रखा था।पति सुबह नहा धोकर बिना नाश्ता किये आफिस चले गये।
दोनों दिन भर विचलित रहे।एक दूसरे को फोन करते थे फिर काट देते थे।
किसी तरह शाम हुई।दोनों ने कुछ भी नहीं खाया था।पति घर पहुंचे, उनके दोनों हाथों में पैकेट थे।
पत्नी चाय लिये आयी।पति देव ने न पी।रात होने वाली थी।पत्नी ने पूजा की थाली,पानी का कलश सजाया।अब वे छत पर पहुंची।पतिमहोदय पहले से ही मौजूद थे।
पत्नी ने पूजा की शुरूआत की।चांद निकलने को ही था।पत्नी ने पति की पूजा की।छलनी से पति को देखा।पति ने पानी का कलश उठाया.पत्नी को पिलाया।पत्नी की आंखों में आंसू छलक आये थे।पति ने झट ताजे गुलाबों का गुलदस्ता एवम लाल रंग की सुंदर साडी निकाल कर दी।पत्नी को गले लगाया।उसके आंँसू पोंँछे।
वे जमीन में घुटनों के बल बैठकर फूल बढ़ाया,और कहा-“आज के इस पावन पर्व पर मैं तुमसे यह वादा करता हूं कि तुमसे कभी नाराज न होऊंगा और न ही तुम्हें डांँटूगा।तुम भी वादा करो मुझसे कभी नाराज न होओगी।”
पत्नी ने मौन वायदा किया।साडी का पैकेट लेकर साडी बदलने चली गयी।नयी साडी पहनकर आयी।दोनों ने सैल्फी ली।अब वे जल्दी से नीचे जाने लगे।पत्नी ने ढ़ेर सारे पकवान बनाये थे।
आसमान में चांद मुस्कुरा रहा था।