






लघु कथा, खरगोश औऱ कछुए की- महेश राजा, महासुमन्द-छत्तीसगढ़
खरगोश और कछुए की
हमेंँशा की तरह इस बार भी कछुए और खरगोश मे दौड़- प्रतियोगिता हुई।
हर बार की तरह इस बार भी कछुआ जीत गया।
संचालक महोदय ने खरगोश से उसकी हार की प्रतिक्रिया जाननी चाही।
पेड के नीचे अधलेटे,अलसाये खरगोश ने जम्हाई लेते हुए जवाब दिया,
-“सदियों से हमारे पुरखे इस दौड़ मे हारते चले आ रहे है।मैं इस परिपाटी को कैसे बदल देता…आखिर यह हमारे पुरखों की ईमेज का सवाल था।”
इसके बाद परंँपरा अनुसार संचालक ने कछुए को बधाई देते हुए दो शब्द कहने को आग्रह किया।
कछुए ने सधे स्वर में जवाब दिया-‘
-“वैसे तो सदियों से हम ही जीतते आ रहे है।पर,इस बार विरोधियों ने खरगोश जी को भड़का दिया था।सो खरगोश ने मुझे चेतावनी दी थी कि इस बार वह जीतेगा….मुझे लगा मामला गड़बड़ है तो बिचोलियों के माध्यम से मैंनै सेटिंग कर ली।इसलिए वह हारने को तैयार हो गये…।”कुछ देर रूकने के बाद फिर बोला-“लेकिन आप किसी को यह सच्चाई मत बताना,क्योंकि सदियों से यह कहानी बच्चों को पढ़ायी जा रही है,उन पर गलत असर पडेगा।”उसकी आवाज में पश्चाताप के सुर थे।
लेखक संपर्क-.
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