साहित्य, मैं शिवनाथ हूँ- अंशुमन राय
मैं शिवनाथ हूँ।जी हाँ।आपने ठीक पहचाना ,मैं वही शिवनाथ हूँ,जो छत्तीसगढ़ के अनेक शहरों की जीवनरेखा है।मैं वही शिवनाथ नदी हूँ,जो कभी सूखता नहीं है।चाहे बारिश हुई हो या ना हुई हो,मै बारहमासी बहता रहता हूँ,लोगों का भरण पोषण करता रहता हूँ इसलिए मुझे सदानीरा भी कहा जाता है।
मैं वही अभागा नदी हूँ,जिसकी उत्पत्ति को लेकर विवाद है।कोई कहता है कि मैं राजनांदगांव जिले की अंबागढ़ तहसील की कोडगुल पहाड़ी क्षेत्र से निकला हूँ, कोई दावा करता है कि मेरा उद्गम महाराष्ट्र राज्य के गढ़चिरौली जिले के कोटगुल तहसील में मोड़री गाँव के समीप खेतो से है।लेकिन यह सत्य है कि मैं महानदी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक हूँ और मेरा विलय छत्तीसगढ़ के ही जांजगीर-चम्पा जिले के शिवरीनारायण में महानदी में हो रहा है।
मैं वही अभागा हूँ, जिसके जल को कई वर्षों के लिए एक लाभ कमाने वाली कंपनी को दे दिया गया था,बिना यह विचार किये कि मेरे जल का वास्तविक अधिकारी तो वह जीव-जंतु ,वह मनुष्य हैं जो सदियों से मुझ पर आश्रित रहा है।मैं वही अभागा नदी हूँ,जिसके योगदान को हमेशा कम करके आँका गया है।मैं मुख्यतः राजनांदगांव, दुर्ग,रायपुर,बिलासपुर से होकर बहता हूँ,एवं इन जिलों का सीमांकन भी करता हूँ।मेरा बहाव भी कोई टेढ़ा-मेढ़ा नहीं अपितु सीधा है।मेरे पास जो रेत रुपी खज़ाना है,वह वर्षो से बिना मुझसे पूछे या बिना मेरी इजाज़त के ही दोहन किया जा रहा है, फिर भी मेरे तट पर कोई तीर्थ बन पाया और ना ही अन्य नदियों जैसा सम्मान ही प्राप्त हुआ।आज भी बिना रोक-टोक ,मुझे प्रदूषित किया जा रहा हूं,मेरे अंदर शहरों का कचरा डाला जा रहा है,फिर भी मैं चुपचाप बह रहा हूँ, लोगो को तर कर रहा हूँ।
इधर कुछ वर्षों से देख रहा हूँ,अनेक भले मानुष,कई संस्थाये आगे आकर मुझे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं,लेकिन शायद और गंभीर प्रयास करने की ज़रूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ी को भी मैं अपना सदानीरा वाला रूप दिखा सकूँ और मेरे ऊपर जो भी निर्भर है,उसकी मैं सेवा कर सकूँ।याद रखिएगा, मैं वही शिवनाथ हूँ,जो दक्षिणी छत्तीसगढ़ के जल को संग्रहित कर उत्तर को सौंप देता है।मेरा अंत हो गया तो मेरे इस समूचे क्षेत्र का भी अंत हो जाएगा।
प्रयागराज-इलाहाबाद निवासी अंशुमन राय,द्वारा लिखित लेख
‘यात्रा राजिम’, ‘भृमण कान्हा किसली’, ‘मैं यमुना हूं’, ‘ननिहाल का छत’, ‘कविता-आज़ दीपावली है’, “छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल” में प्रकाशित हो चुकी है.
अब पढ़िये- ‘मैं शिवनाथ हूँ’.
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