लघुकथा, उपयोग- महेश राजा, महासुमन्द-छत्तीसगढ़
‘यह हमारे नगर के गौरव है।लेखक है,कहानियां, लघुकथाए आदि लिखते है।भारत कीलगभग हर पत्र पत्रिकाओ मे उनकी रचनाऐ प्रकाशित होती रहती है।”-मित्र ने अपने एक धनी मित्र से उसका परिचय कराया तो वह शर्म से गड़ा जा रहा था।
उक्त धनाढ्य व्यक्ति ने नौकर से चाय और मिठाईयाँ लाने का आदेश दिया।फिर बोले,”यह तो बडी अच्छी बात है।साहित्य से हमें भी बडा लगाव था,पर क्या करे.बिजनेस के इन पचड़ों मे ही उलझे रहे।फिर भी हम, साहित्यकारो की बडी ईज्जत करते है।
थोडी देर बाद बोले,-“अच्छा हुआ .आपसे मुलाकात हो गयी।भ ई इस बार यूनिवर्सिटी के ईलेक्शन मे साहबजादे भाग ले रहे है।कुछ जोरदार भाषण,नारे,
जिंगल आदि लिख दिजिये।देखिये निराश मत किजिएगा।आप इनके मित्र है।रूपयो पैसो की आप बिल्कुल चिंता मत करना।बेटे को हर हाल मे जीताना है।बस आप जैसे गुणीजनों का आशीर्वाद मिल जाये।निराश मत किजिएगा।”
उसे अब चाय कडवी लग रही थी।
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