कहिनी : मया के बंधना – डॉ. दीक्षा चौबे
राधे भइया ल आत देखिस त सुरेश हर अपन आप ल रोक नई पाइस अउ दूरिहा ले दउड़त आके ओला पोटार के रो डारिस। दुनों भाई के मया ल देख के अस्पताल के जम्मो आदमी उंखरे डाहर देखे लागिन।
सुख के समय म कतको नाते रिश्तेदार आ जाथें फेर बिपत काल म जउन संग दय उही सच्चा रिश्ता ए आज कई बरस बाद सुरेश हर ए बात ल समझिस।
भइया के पाछु-पाछु भउजी अउ घर के बड़ पुराना नौकर रामा अब्बड़ अकन जिनिस फल दूध धरे आत रिहिन। “कइसे हे छोटकी बहु- भउजी हर पूछिस त सुरेश के आँखी ले आँसू नदिया कस बोहाय लागिस। सब्बो झन ल धर के वार्ड म अपन पत्नी शोभा तीर लेगिस जेखर एक ठिन दुर्घटना म हाथ गोड़ टूट गे रिहिस । “जिनगी हर बाँच गे ए भगवान के बड़ किरपा हे। जा बजरंगबली के मंदिर म नरियर चढ़ा देबे। “
“अब हमन आगे हन छोटे तैं कुछु फिकर झन कर”
मोला गुस्सा ए बात बर हे के तैं हमन ला बेगाना समझे। दूसर के मुँह ले हमन बहुरिया के एक्सीडेंट ल जानेन। तैं तुरते खबर करते त तोला अतेक दुख भोगे बर नई पड़तीस । ले अब कुछु नई होवय जा तोर भउजी अउ रामा ल घर लेग जा ओहर सब झन बर रोटी राँध के भेज दिहि अउ लइका मन ल तको सँभाल लिही।”
भइया के आय ले मानो सुरेश के मुड़ ले पथरा बरोबर बोझ उतर गे रिहिस। अतेक दिन ले अस्पताल अउ घर दुनों के बीच म ओहर चकरी कस भटकत रिहिस फेर भइया संग अपन दुर्व्यवहार ल सुरता कर के ओखर हिम्मत नई होइस के ओला अपन दुख बतातीस।
शहर म मित्र त बहुत बनाइस फेर संकट म जमो मुँह फेर दिन।
भइया अउ भउजी घर अउ अस्पताल दुनो सम्भाल लिन। भइया हर शोभा के ऑपरेशन के खर्चा ल तको सँभाल लिस। जब भइया आघु म रहय ओहर भइया ले ऑंखि नई मिलावय जब नई रहय त बचपन ले लेके जवानी तक सब्बो जुन्ना गोठ मन ल सुरता करय।
भइया अउ ओखर बीच म दु ठिन बहिनी घलो रिहिन तेमन दुनो अपन-अपन ससुराल म खुशी-खुशी रहिथें। भइया अउ सुरेश के बीच म छह बरस के अंतर होय के सेतिर ओहर अब्बड़ डेरावय। भइया हर शुरूच ले माँ बाप के रहिते म घर अउ खेत सँभाले के अपन
जुम्मेदारी निभाइस। बाबू(पिताजी) के मरे के बाद सब्बो भाई बहिनी ल देना लेना बहुत सोच समझ के करीस।
सबके बिहाव तको करीस। सुरेश के नौकरी रायपुर शहर के बैंक मा लगगे। तिहार परब मा उमन गाँव जावय। लइका बच्चा होय के बाद उंखर पढ़ई लिखई
चालू होइस तहँ उंखर गाँव जवई कमती होय लगिस।
एक घ शोभा हर कहीस–” कतेक दिन हमन किराया के घर मा रहिबो जी। गाँव के खेत के बंटवारा मांग लव अपन भाई से अउ तह उही पइसा म हमन इहाँ घर बिसा लेबो। धान ल हर साल बेचथे भइया हर फेर कतका पइसा मिलास कभू हमन ल बतावय नहीं तेखर ले बंटवारा करके अपन-अपन हिस्सा के देखतेन”
ओहर बड़ हिम्मत करके भइया ल ए गोठ किहिस – भइया हर अब्बड़ रिसाइस। तुमन बने बनाय जिनिस ल झन बिगाड़ करव। घर लेना हे त अपन नौकरी के कमाई
ले बचत कर के लव। खेत खार के बेचे के गोठ झन कर।मोला बंटवारा देहे म कुछु हरज नइहे फेर तैंहर दूसर मन के बात म आके अपन पुरखौती जमीन ल बेच देबे ए मोला मंजूर नइहे। भइगे इही बात हर दुनो भाई के बीच म झगरा के कारन बन गे अउ सुरेश हर रिसिया के गाँव जाय बर छोड़ दिस, भइया संग गोठियाय बर तको छोड़ दिस।
फेर भइया हर ओला नई छोडिस। चाउर, दार ,गेहूं , साग,खाये पिये के जिनिस गाँव ले आते रहय। शहर के महंगाई म अतके हर तको बहुत मदद हो जाय तेखर पाय के उहू कभू कुछु रोकटोक नई करिस अउ जिनगी अइसनहे चलत रिहिस। आज ओहर सोचत रिहिस भइया हर का गलत बोलिस। नौकरी करत-करत खेती बाड़ी करे बर कइसे जातिस। भइया हर जम्मो काज ल करत हे अउ एदे ओखर जरूरत के बखत आके खड़े होंगे । ओला अउ का चाही बेरा बखत म परिवारे हर काम आथे ।उमन जिनगी भर कमा के तको एक एकड़ खेत नई बिसा सकय। बने बनाय जायदाद ल मिटा के अउ बेघर हो जातिस। आज भइया के गोठ हर ओखर दिमाग म हथौड़ा सही परत हे – जइसनहे जरई ल तीर देबे त पेड़ हर जिंदा नई रहय वइसनहे ए भुइँया हर हमर संस्कार ए, हमर महतारी ए । गाँव म हमर जड़ हे संस्कार,परिवार हे, अपन जड़ ले अलग रहिके कोनो पौधा हर नई जिये सकय।” सुख साधन , नवा घर आ जाहि फेर परिवार टूटे के बाद नई जुरय। बड़ पेड़ के छाँव सरीख आज भइया हर ओखर परिवार ल अपन मया के छईया म ले लिस अउ ओला ये बड़े संकट ले उबार लिस।
कतको बड़े संकट आथे धीरे धीरे टल जाथे। भइया हर कभू-कभू गाँव जावय अउ आ जाय। भउजी हर लइका मन ल अपन छाती ले लगा के दुलार करिस। बीस बाईस दिन बाद शोभा हर अस्पताल ले घर लहुट के आगे ।भइया भउजी के सेवा ल देख के ओखरो व्यवहार बदल गे। वहू बड़ शर्मिंदा होइस -”का करबे रुपिया घर ले के जब मुश्किल घड़ी म कोनो कंधा देवइया नई रही। हमर आपस मे प्रेम बने रहय यही बहुत हे।”
जब भइया मन गाँव जाय बर तइयार होइन त सुरेश ल बला के कहीस -” इलाज पानी के खर्चा अब्बड़ होगे कइके फिकर झन करबे छोटे । अउ कुछु खर्चा होही त बिना संकोच करे मांग लेबे।अतेक साल ले मेंहर धान बेच के तोर हिस्सा ल बैंक म जमा करत रेहेंव। अब तोला इँहा घर लेना होही त बने सही देख लेबे। फेर हमरो मन बर एक ठिन कमरा राखबे। हमू मन कभू-कभू शहर घूमे बर अउ लइका मन तीर रहे बर आबो कइसे जी।
भइया के गोठ सुनके सुरेश अपन आप ल नई थाम पाइस। भइया के छाती ले लइका सही चिपटगे अउ भभर के रो डारिस – “ मोला माफी दे देबे भइया। बाप सही अड़बड़ मया देस मही गदहा समझ नई सकेंव। मोला ऊंचा उठना हे फेर डोरी ले जुड़े पतंग कस नहीं माटी के भीतर धंसे पेड़ कस बढ़ना हे। अपन संस्कार अउ अपन परिवार ल संग धरके। तैं हमेशा मोर हित बर कहे भइया ।मेहर तोला गलत समझेंव मोर सब्बो गलती ल भुला देबे भइया।
“ छोटे हर त आज बड़का बड़का गोठ गोठियावत हे देखत हस जी “ भउजी डहर देख के भइया केहे लागिस। भउजी के संघरा शोभा हर घलो मुच ले हाँस डिस । मया के बंधना म जम्मो परिवार पहिली कस बंधा गे राहय।
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