दो लघुकथा – महेश राजा
■आलोचक मित्र
मित्र ने मेरी एक सामयिक रचना पर त्वरित टिप्पणी की,-“आजकल खूब अच्छा लिख रहे हो।कथ्य भी अच्छा है,पर संँस्मरण उस पर हावी हो रहे है।इससे सावधान रहना होगा।यू- नो,अंँग्रेज़ी शब्दों के प्रयोग के मोह से बचना होगा।बाकी सब लगभग ठीक है।प्लीज,टेक केअर एन्ड कीप ईट अप।”
■गड्ढे
-“सर,मुख्य मार्ग की सडक पर फिर गड्ढे हो गये है।कोई बडे टा्सपोटर के वाहन ने नुकसान पहुंचाया है”-
मातहत ने निरीक्षण के दौरान अफसर से कहा।
-“हो जाने दो भा ई,फिर से भरवा देंगे।सरकार ने लोककर्म विभाग को इसी कार्य के लिये बनाया है”
“फिर यह भी सोचो कि गड्ढे नहीं होंगे तो हमारे विभाग की क्या जरुरत?”
फिर वे अपने मातहत के कान के पास फुसफुसाये-“अरे भ ई .यह सब तो चलता रहता है।और यह समझ लो कि जब तक ये गड्ढे है, तबतक तुम्हारे हमारे बाल बच्चों के पेट के गड्ढे भरते रहेंगे।
आज ही रिपोर्ट तैयार कर टैंडर निकाल दो।।
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