कहानी, आँखों की प्यास- सुधा वर्मा रायपुर,छत्तीसगढ़
मनीषा की तबीयत ठीक नहीं है।उसे अपने बेटै पंकज की बहुत याद आ रही है। एक ही बेटा है।बहुत अरमानों से उसे डाक्टर बनाया था।उसके पापा सिंचाई विभाग में एस डी ओ थे। सभी की ईच्छा थी कि पंकज डाक्टर बने ।उस आस में दादा दादी तो चल बसे। एम बी बी एस करते हुये उसके पापा भी गुजर गये।
घर में पैसे की कमी नहीं थी। कमी थी तो किसी इंसान की। इसी के चलते मनीषा ने एक कुत्ता पाल लिया।बड़ा ही प्यारा कुत्ता है। कुत्ता मनीषा के आगे पीछे ही घूमता है। उसे छोड़ता ही नहीं। रात को मनीषा के बिस्तर के पास ही सोता है। मनीषा ने उसके लिये बहुत सुंदर सा कई परत के कपड़ों से गद्दा बनाया है।एक शॉल भी रखी है।ठंड में उसे ढक देती है।
पंकज एम एस करने के बाद केनेडा चला गया।कुछ दिन में लौट आयेगा बोला था।मनीषा ने एक डाक्टर लड़की देख कर शादी तय कर दी। तान्या नाम था उसका। बहुत सुंदर थी।नृत्यकला से पूर्ण, भाषण ,वाद विवाद में भी भाग लिया करती थी। खाना भी बनाना आता था। मनीषा खुश थी कि चलो.अब बहु घर आ जायेगी तो पंकज भी अपने देश लौट आयेगा।
पंकज आया। बहुत धूमधाम से शादी हुई। एक माह तक पंकज भारत में रहा।उस समय उसने तान्या का पासपोर्ट भी बनवा लिया। उसे अपने साथ केनेडा ले गया। मनीषा बहुत खुश थी।बच्चे घूम कर अपने घर आयेंगे और हम तीनों आराम से रहेंगे।
पंकज गया तो लौट क नहीं आया।उसने मनीषा को एक पत्र लिखा कि अब वे लोग केनेडा में ही रहेंगे।तान्या को भी उसी के अस्पताल में नौकरी मिल गई है। अब हम लोग दीपावली में आयेंगे तब आपको भी यहां ले आयेंगें। मनीषा का तो जैसे सब कुछ चला गया।
मनीषा रोज रात को कुत्ते के साथ अपने कमरे में सोती। रोज रात को सोचती कि कल सुबह कुछ नया समाचार आयेगा। सुबह खुशी से उठ कर घर का काम निपटाती। अखबार पढ़ती और खाना बनाने लग जाती। कुत्ता जिसका नाम उसने सोम रखा था। उसे दिन भर नाम ले ले कर बातें करते रहती थी। आँखे हर आहट पर दरवाजे की ओर उठ जाती। एक एक दिन गुजर रहा था। एक दिन उसके छाती में बहुत तेज दर्द हुआ। वह अपने पड़ोस में शर्मा जी के घर गई। उनका लड़का मनीषा को डा. के पास ले गया। हार्ट अटेक था।उनको भर्ती कर लिये। समस्या बहुत बड़ी थी। उनके दिल का आपरेशन हुआ। उसके घर के आप पास के लोगों ने उसकी देखभाल की।
एक माह अस्पताल में रहने के बाद मनीषा घर आई। तब कुछ रिस्तेदार उसे देखने आये पर सेवा करनी पड़ेगी करके वापस चले गये। कालोनी के लोगों ने नियम बना लिया।सभी के घर से नास्ता और खाना आने लगा। दस दिन बाद मनीषा ने कहा कि घर पर ही खाना बनवायेंगे। एक बाई लगा लेते हैं। सभी ने कुछ सोच कर मनीषा के घर पर ही खाना बनाने लगे।दो समय का चाय नास्ता और सुबह का खाना , शाम का खाना कौन कौन बनायेंगे? यह कालोनी के लोग तय कर लिये। अब तो मनीषा बहुत खुश थी। किसी ने उसके बेटे को खबर ही नहीं दी थी।
एक दिन बेटे का खत आया जिसमें उसने अपना मो. नम्बर दिया था। पड़ोसी ने मनीषा की बात उससे करा दिये। बाद में सबने मिलकर तय किया कि मनीषा के लिये मोबाइल खरीद दिया जाये। दूसरे दिन मोबाइल भी आ गया।बार बार मनीषा पैसा देना चाहती थी पर किसी ने नहीं लिया। मोबाइल चलाना भी सीख गई। एक दिन अचानक पंकज आया। उसे आने के बाद माँ के तबीयत के बारे में सारी बातें पता चली। वह असल में मकान बेच कर माँ को हमेंशा के लिये ले जाने आया था। उसे बहाना मिल गया। वह मनीषा से बोला कि तुरंत मकान बेच देते हैं। अब आप मेरे साथ चलो।
मनीषा को सबकी मदद आय आने लगी। शादी के बाद कैसे झूठ बोल कर तान्या को लेकर चला गया। साल भर तक उसने खबर भी नहीं ली। मकान बेच कर ले जाने आया है। इस एक साल में मै भी पूरी दुनिया देख ली हूं। उसने कहाकि पहले कालोनी वालों.से भी बात कर लेते हैं।यहाँ कोई खरीद ले।पंकज ने भी हाँ कह दिया।रात को सब लोग मनीषा के घर आते हैं। सब चुप बैठे थे अचानक मनीषा बोलती है…….” पंकज कहता है कि मकान बेच कर मेरे साथ चलो। पर मैं जाना नहीं चाहती हूं।” सभी चुप रहते हैं। पंकज कहता है” हां माँ यहां अकेले क्या करेगी? मेरे साथ चलेगी।”
मनीषा कहती है कि एक साल सै अकेली हूं, दो पत्र भेजा और दूसरे पत्र में मोबाइल नम्बर भेजा। तू चाहता तो बात करने के लिये एक मोबाइल भेज सकता था। तान्या को लेकर गया तो वापस ही नहीं। आज अचानक आकर मकान बेचने की बात कर रहा है और मुझे ले जाने की बात कर रहा है। तू देख रहा है ये हमारे कालोनी के लोग है।मुझे अटैक आया तो ये लोग मेरे साथ थे।एक माह अस्पताल में रही मुदे तेरी कमी भी महसूस भी नहीं हुई। घर आई तो मेरे साथ ये लोग खड़े रहे।तीन माह इन बच्चों ने मुझे खाना बना कर दिया है। अब ये ही मेरा परिवार है।मेरे पास पैसा है पेंशन है। आज नौकर भी रख सकती हूं।सबसे बड़ी बात मेरा सोमू हर छण मेरे साथ रहता है। आँखो में तेरे आने की आस अब थक चुकी है। आँखो मे तेरा चित्र मिटने लगा है। अब तो यही मेरा परिवार है।तुम जा सकते हो।
सभी लोग चुप सुन रहे थे और देख रहे थे। पंकज के आँख में आंसू आ गये।वह मनीषा के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा। पर माँ अब ओ माँ नहीं थी जिसकी आँखे पंकज के इंतजार में दरवाजे पर लगी रहती थी। अब वह समझ चुकी थी कि अब पंकज उसका नहीं है तान्या का है। माँ ने अपना निर्णय सुना दिया कि वह साथ में नहीं जायेगी।मरने के बाद भी यह मकान उसको नहीं मिलेगा।वह अपना सब कुछ दान कर देगी। सभी अपने अपने घर चल गये।पूरे घर में सन्नाटा पसर गया।खाना बना था पर मनीषा और पंकज दोनों ने खाना नहीं खाया।सोमू भी चुप बैठा रहा।वही तो था जो मनीषा की हर भावना को समझता था। सुबह की फ्लाइट से पंकज चला गया।जब दरवाजे पर टैक्सी आ कर खड़ी हो गई तो मनीषा ने नजर घुमा कर भी नहीं देखा।पंकज माँ के पैर छुने गया। माँ को अपनी बाहों में समेट कर कहता है ” माँ मुझे माफ कर दो ,मकान को मत बेचो पर मेरे साथ तो चलो।” मनीषा ने कहा तुम लोग अपने जीवन में खुश रहो और मुझे अपने आप में खुश रहने दो ।अब तुम जाओ। बोलते हुये पीठ पर हाथ रख कर दरवाजे की तरफ ले गई। पंकज टैक्सी में बैठ गया।लह पलट कर देखा भी पर मनीषा के आँखो में अब वह सूना पन नहीं था।उसकी आँखो से लग था कि अब इंतजार तो खतम हो गया और आँखो की प्यास भी खतम हो गई।
मनीषा अब खाना बनाने में लग गई। आज सोमू के साथ जमीन पर बैठ कर मनीषा खाना खा रही थी। दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार से देख रहे थे। मनीषा बहुत प्यार से सोमू को रोटियां तोड तोड़ कर खिला रही थी।
●सुधा वर्मा हिंदी औऱ छत्तीसगढ़ी भाषा की लेखिका है. अब तक 17 पुस्तकों का प्रकाशन.
●17 वर्षों से देशबंधु के साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी अंक ‘मड़ई’ का सम्पादन
●अनेकों सम्मान से सम्मानित
●छत्तीसगढ़ी भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी द्वारा,28 नंवबर 2020 को सम्मानित
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