लघुकथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
▪️ डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
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• उद्घोष
• डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
• भिलाई : छत्तीसगढ़
घर में स्वामी जी आने वाले थे। तैयारियां जोरों पर थी। अपने बड़े से ऊंचे पलंग पर बैठकर दादी अपनी तीनों बहुओं पर हुकुम चला रही थी। स्वामी जी के स्वागत सत्कार में कोई कमी ना रह जाए इस बात का पूरा ध्यान रखा जा रहा था। मंझली बहू की बिटिया गुड़िया जो दादी की मुंह लगी भी थी बार-बार उन्हें छेड़ रही थी कि-“दादी हर 6 महीने में जितना पैसा स्वामी जी के सत्कार में लगाती हो उतने में तो कामवाली बाई की दोनों बेटियों की साल भर की फीस चली जाती” और दादी उसे घुड़क रही थी-” चुप कर ज्यादा पढ़ लिखकर मुँह भी ज्यादा खुलने लगा है।
अचानक तीनों बहुएं तैयार होकर दादी के सामने आई और फल मिठाइयों की थालियां सजाने लगी। मंझली बहू के सर से आंचल गिर गया था। दादी अपने तीखे लहजे में कह उठी -“आज तो मन हो रहा है कि एक कील और हथोड़ा रखूं और बहू के सर पर ठोक दूं जिससे इसका आंचल अपनी जगह से ना हिले। बरसों से स्वामी जी आ रहे हैं घर में मजाल है जो संस्कार इन्हें छू जाए। इतने आदमी आयेगे आज और…..”
इतने में गुड़िया की सनासनाती आवाज आई
-” दादी आज तो मन हो रहा है सुई धागा रखूं जो आपके होठों को सी सके। बरसों से स्वामी जी आ रहे हैं। घर के पुरुषों में संस्कार क्यों नहीं आता कि वह महिलाओं की ओर आंख उठाकर ना देखें”
तीनों बहुएं फटी फटी आंखों से देखने लगी क्योंकि पहली बार दादी निशब्द थी।
बाहर स्वागत का शंखनाद हो रहा है.
{ • डॉ. सोनाली चक्रवर्ती ‘स्वयंसिद्ध ए मिशन विद् ए विजन’ की संस्थापक अध्यक्ष है. और • रिसाली नगर पालिक निगम की स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर व ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ संपादकीय मंडल में सलाहकार हैं. • संपर्क : 98261 30569 }
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