लघुकथा
●रिश्ते
-श्रीमती संतोष झांझी
शरणी लाहौर से अपनों को खोकर अपनें दो बच्चों और देवर देवरानी के साथ मिलिट्री के ट्रक में दिल्ली पहुंची। वहीं एक शरणार्थी कैंप में उन्हें ठहरा दिया गया। पर शरणी तो जैसे सदमें में पत्थर हो गई थी। घर द्वार दुकानें बिजनेस सब वहीं लाहौर मे रह गया।
देवर देवरानी शरणी को क्या समझाते वह भी सदमें मे थे।
उसी दिन शाम ढले देवरानी के पिता उन लोगो को तलाश करते शरणार्थी कैंप पहुंचे। उन्हें देखते ही सभी फूट फूट कर रोने लगे।थोड़ी देर बाद सभी ने एक दूसरे को धीरज बंधाया।
देवरानी कै पिता ने कहा- हमें पता चला हिन्दुओं को मिलिट्री बचाकर दिल्ली कैंपों मे लेकर आ रही है। पाँच दिन से हम यहीं हर कैंप में आपलोगों को ढूंढ रहे है। चलो अब आपलोग हमारे साथ अमृतसर चलो। वहीं कोई काम धंधा कर लेना।
देवर रमेश नै शरणी से कहा– ठीक है न भाभी, चलिये अमृतसर ही चलते हैं । वही चलकर कुछ काम धंधा सोचते हैं ।
रमेश के ससुर तुरन्त बोले– नहीं नहीं इनके हमारे साथ जाने से सभी जान जायेंगे कि लाहौर से लुटके बरबाद होकर आये हो तुम्हारे जाने से लगेगा लाहौर के खराब हालात देख लड़की मायके आगई है। वैसे भी हमारा घर छोटा है बहनजी को वहां तकलीफ होगी। तुम पहले अपना काम धंधा जमालो फिर किराये का ऐकाध घर लेकर बहनजी लेजाना।
रमेश को असमंजस मे देख श’रणी ने कहा– भाई साहब ठीक कह रहे हैं । मै यहाँ बच्चों के साथ सुरक्षित हूँ । आपलोग जाओ वहाँ पहले काम धंधा जमाओ फिर अलग घर लेकर हमें ले जाना।
बड़े बेमन से रमेश पत्नी और ससुर के दबाव मे रोते हुए अमृतसर चला गया। शरणी रात भर बच्चों को सीने से लगाये रोते हुए उस भयानक दृश्य को याद कर रहीं थी जब इसी देवरानी को दंगाइयों से बचाते हुए उसके दो दो किशोर बेटे और पति दंगाइयों कै हाथों कत्ल हो गये और शरणी के पास बचे ये दोनों पांच साल का बेटा और सात साल की बेटी ।
शरणी समझ गई अब उसे ही इन दोनों बच्चों का भविष्य संवारना है। वह स्वयं को तौलने लगी कि वह क्या क्या कर सकती है , कपड़े सिलाई का काम कर सकती है,, और खाना पकवान बनाना तो हर औरत जानती है।
【 75 वर्षीय, श्रीमती संतोष झांझी,छत्तीसगढ़ की गौरव हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ संपादकीय बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की सदस्य, श्रीमती संतोष झांझी का लेखन कार्य निरंतर जारी है, ‘छत्तीसगढ़ आसपास’वेब पोर्टल में भी उनकी कविताएं यदा-कदा प्रकाशित की जा रही है, आज़ हमारे वीवर्स/पाठकों के लिए लघुकथा ‘रिश्ते’ दे रहे हैं, कैसी लगी, अवश्य लिखें,ख़ुशी होगी. ●संपादक 】
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