लघु व्यंग्य कथा
■आस्थावान लोग
-मिर्ज़ा हफीज़ बेग
उस गांव के लोग बड़े आस्थावान थे। आस-पास के बीस-बीस गांव में वे सम्मान की दॄष्टि से देखे जाते। उन्ही आस्थावान लोगों के गांव में एक अंधा था जो इस गांव के लोगों द्वारा बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता। वे मानते थे कि उस अंधे में चमत्कारी शक्तियाँ हैं।
एक दिन उस अंधे के हाथ एक बटेर लग गई। अंधा खुश था कि शाम के खाने का इंतेज़ाम हो गया। लेकिन गांव वालों ने यह देखा तो वे नत्मस्तक हो गये।
“अंधे के हाथ बटेर?…”
“यह तो चमत्कार हो गया।” एक ने कहा।
“ईशवर की माया…” कोई बोला।
“खुदा की कुदरत है…”
देखते-देखते बात फैल गई। आस-पास के गाँवों से हजारों लोग यह चमत्कार देखने पहुंचने लगे। भक्तों का मेला लग गया। गांव के लोग एक बार फिर अपने-आप को धन्य समझने लगे।
लेकिन तभी किसीने एक सवाल उठा दिया, “क्या वह सचमुच अंधा है?”
यह गांव के सम्मान पर चोट थी। गांव के लोग इस चोट से आहत हो गये।
“यह नास्तिक कौन है?” वे चिल्लाये।
“मैंने तो सिर्फ एक सवाल उठाया था।” उस व्यक्ति ने डरते-डरते कहा।
“हमारी आस्था पर सवाल उठाने वाले तुम होते कौन हो? क्या तुम्हे हमारे दुश्मनों ने भेजा है?” वे बोले।
“नहीं, यह तो सामन्य सा सवाल था…”
“तुम्हे पता नहीं, आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते?”
“जिस आस्था पर सवाल नहीं उठाये जा सकते, जिसे सच की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता, उसे अंधविश्वास कहते हैं।” उसने जवाब दिया।
“तो तुम अब हमें अंधविश्वासी ठहराओगे…” गांव वाले बिफर गये, “मारो… मारो… इसे गांव से बाहर कर दो…” वे चीखते चिल्लाते उसे मारने दौड़े।
मार खाकर भागते हुये व्यक्ति ने एक पत्थर उठाकर अंधे के सिर का निशाना लेकर तानकर दे मारा। लेकिन अंधा तो चमत्कारी था। इससे पहले कि पत्थर उस अंधे के सिर के दो टुकड़े कर देता, अंधे ने दोनो हाथों से पत्थर को लपक लिया और पत्थर जिधर से आया था उधर ही दे मारा। पत्थर ठीक उसी व्यक्ति को लगा और वह वहीं ढेर हो गया।
लेकिन इस सारे कार्यकलाप के दौरान बटेर अंधे के हाथ से छूटकर नौ दो ग्यारह हो गई।
“देखा कुदरत का करिश्मा…” गांव वालों ने ज़मीन पर पड़े हुये उस नास्तिक के पास जाकर कहा, “ईश्वर का न्याय देखा… उसने एक ही पत्थर से अंधे को भी बचा लिया, बटेर की जान भी बचा ली और एक नास्तिक को भी धराशाई कर दिया…”
वे आस्थावान लोग थे…
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