अनुभव आसपास
■प्रेम का जादू
– तेज़राम शाक्य
मेरी मां को आइसक्रीम, दही और गुलाब जामुन बहुत पसंद थे। मैं जब कभी उनकी यह पसंद का तोहफा लाकर उन्हें हैरान कर देता था। वृद्ध होने के कारण हम लोग उपर और मेरे माता-पिता अकेले घर के नीचे के हिस्से में रहना पसंद करते थे। मेरी मां अक्सर बीमार रहा करती थी, मगर फिर भी वह मेरे परिवार का पूरा ध्यान रखती थी ।थोड़ा भी मेरे घर में कोई बीमार हुआ या अन्य कोई परेशानी होती ,तो वह विचलित हो जाती थी वह हम लोगों को बहुत प्यार करती थी ।वह हम लोगो का ही नहीं मोहल्ले के हर एक व्यक्ति को सहायता देने के लिए हमेशा तत्पर रहती थी ।वे गेट के बाहर बैठ जाती और हर पहचान वालों से उनके हाल जानती, खुद हंसती और उन्हें हंसाती ।मेरे पिताजी भी हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे, दोनों आपस में बेहद प्रेम करते थे। सफेद बालों वाले यह दोनों प्रेमी एक दूसरे का हाथ पकड़कर पसंदीदा गाने पर थिरकने लगते। दोनों ही खुश रहते, प्यार करते और प्यार बांटते भी थे। वह हमारे मोहल्ले के एक रोमांटिक युगल थे।
एक बार अचानक मेरी मां को दौरा आया, और वह अब बिस्तर से उठने बैठने में भी परेशानी महसूस करने लगी थी। मैं उनका पूरा ध्यान रखता, उनके पास रहता, उनकी सेवा करता। मैं उनको बताता था कि वह इस संसार की सबसे अच्छी मां है,और उन्हें उनका बेटा होने पर गर्व है। मैंने उन्हें वे सारी बातें बताई जो मैं उन्हें लंबे समय से कहना चाहता था ।मैं उन्हें यह सब इसलिए बता रहा था, क्योंकि मुझे यह एहसास हो चुका था कि कुछ समय बाद वे इस स्थिति में ही ना रहें कि मेरे अंदर छिपे प्रेम को वह महसूस कर सके।
फिर एक दिन वह स्थिति भी आ गई कि वह मुझे या परिवार में किसी को भी पहचान नहीं पा रही थी।यह मुझे और मेरे परिवार की बहुत दुखद स्थिति थी, वह अक्सर पूछा करती तुम्हारा क्या नाम है? मैं उन्हें अपना नाम बताता था और गर्व से बोलता कि मैं आपका बेटा हूं ।वह टकटकी लगा कर देखती रहती फिर अचानक मेरा हाथ जोर से पकड़ती, उनका यह स्पर्श पूरे बदन में फुरफुरी पैदा कर देता ।काश मैं फिर उस स्पर्श को महसूस कर पाता। फिर मैंने उन्हें एक दिन उनके मनपसंद चीज आइसक्रीम और दही लाकर दिया तो वह खिल उठी। वह उसे खाकर बहुत प्रसन्न लग रही थी। फिर मैं उनकी पलंग पर उनके समीप बैठ गया और उनका हाथ पकड़ लिया ।यह एक दैवी स्पर्श था। मैंने खामोशी से उनके प्रति अपना प्यार जताया ।उनके हाथ पैर दबाने लगा वह अच्छा महसूस कर रही थी ।उस शांति में, मैं हमारे असीम “प्रेम के जादू” को महसूस कर सकता था। हालांकि मैं यह जानता था कि उन्हें तो यह एहसास ही नहीं होगा कि उनके हाथ पैर कौन दबा रहा है।
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि वह उल्टे मेरे ही हाथ को हौले-हौले दबा रही थी, बस तीन बार। मैं समझ गया कि वह कुछ कहना चाहती हैं।बिना शर्त के “प्रेम का जादू” दैवी शक्ति और कल्पना शक्ति से फलता फूलता है ।मुझे यकीन नहीं हुआ, वह हालांकि अपने दिल के विचारों को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती थी, लेकिन शब्दों की जरूरत भी नहीं थी ।फिर मुझे याद आया जो मुझे पिताजी ने एक बार बताया था कि वह अपनी जवानी के दिनों में प्रेम का इजहार एक खास तरीके से करते थे। जब भी वे दोनों साथ-साथ बैठते तो वे मेरे पिताजी का हाथ तीन बार दबाकर यह बता ती थी कि मैं तुमसे असीम प्यार करती हूं ।पिताजी भी उनके हाथ को दो बार दबा कर जवाब देते थे कि “मैं भी”।
फिर मैंने भी मां के हाथ को दो बार हौले से दबाया। उन्होंने अपना सिर घुमाया और मुस्कुरा कर प्यार से मुझे ऐसे देखा कि मैं उसे कभी नहीं भुला पाऊंगा ।उनके चेहरे पर उस “प्रेम के जादू” की चमक थी अचानक कुछ ही देर में वह मुझसे लिपट गई और रोने लगी शायद यह कहना चाहती थी “किसी ऐसे व्यक्ति का होना महत्वपूर्ण है जो आपसे प्यार करता हो”। मेरी आंखों से भी आंसू छलक पड़े मैंने उन्हें ढाढस बंधा कर लिटा दिया।
मेरी मां इस घटना के कुछ दिन बाद ही गुजर गई। उस दिन के वे खास पल मेरे हृदय पर विशेष छाप छोड़ गए जो मुझे हमेशा जिंदा दिल बनाए रखते हैं।
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