बाल कहानी
■अक्लमंद कौन है
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
क्या जानवरों में भी अक्लमंद होते है? ढेंचू-ढेंचू कहते हुए गधे ने चतुरा सियार से पूछा। चतुरा सियार ने हँसते हुए कहा, “क्यों नहीं, मुझे ही देख लो, मैं कितना अक्लमंद हूँ ।“
सियार की बातें सुनकर पेड़ पर बैठे भोलू बंदर को हँसी आ गई। उसने व्यंग्य करते हुए कहा, “तुम अक्लमंद नहीं, धूर्त हो। तुम्हारा हर काम धूर्तता की श्रेणी में आता है।’’
चतुरा सियार को भोलू की बातें चूभीं तो भी उसने सहज होते हुए कहा,-“अच्छा तो तुम्हीं बता दो, अक्लमंद किसे कहते हैं?“
भोलू बंदर ने कहा- “अक्लमंद वे होते हैं जो अपनी बुद्धि से दूसरों की समस्या का समाधान करते हैं। अक्लमंद और चालाकी में अंतर होता है।“
चतुरा सियार और भोलू के बीच विवाद सुन रहे ढेंचू गधे ने कहा- भोलू भाई, मुझे भी नहीं मालूम था, अक्लमंद किसे कहते हैं। मैं अब तक इस चतुरा सियार को ही अक्लमंद समझता था। तूने ठीक बताया। अब इससे सतर्क रहना पड़ेगा।
ढेंचू गधे की बात सुनकर चतुरा सियार को गुस्सा आ गया। उसने चिढ़ते हुए कहा-“तुम गधे हो और गधे ही रहोगे। तुम्हें तो कुछ समझ में आता नहीं। अन्यथा भार क्यों ढोते?”
हाँ-हाँ, मुझे गधा ही रहने दो। कम से कम मैं किसी का अहित तो नहीं करता। मेहनत कर के खाता हूँ। किसी की जूठन तो नहीं खाता।“
जैसे ही जूठे खाने की बात ढेंचू गधे ने कही- चतुरा सियार आग बबूला हो गया। वह गधे को मारने दौड़ ही रहा था कि भोलू ने चतुरा के सामने छलाँग लगा दी। और उसके सामने अकड़ कर खड़ा हो गया। और कहा- ‘‘तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम यहाँ से चुपचाप चले जाओ, अन्यथा तुम्हें लेने के देने पड़ेंगे।’’
अब तो चतुरा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह अपना सा मुँह लेकर चला गया, लेकिन उसके भीतर बदले की भावना बलवती हो रही थी। वह सोच रहा था किसी न कि तरह इनसे बदला तो लेना है।
एक दिन की बात है जंगल का राजा शेर सिंह का पेट भरा हुआ था, इसीलिए वह अपनी गुफा में आराम कर रहा था। सियार तो मौके की तलाश में था। धीरे से गुफा के पास पहुँच कर चुपचाप बैठे रहा। कुछ समय पश्चात जब शेर बाहर आया। चतुरा सियार को गुफा के मुहाने में बैठा देख कर उसे आश्चर्य हुआ। उसने सियार से कहा-‘‘कैसे चतुरा, यहाँ कब से बैठे हो, कुछ काम है क्या?’’
नहीं नहीं, ऐसी कोई विशेष बात तो नहीं है, इधर से निकल रहा था, तो सोचा आप से भेंट करते हुए चलूँ, सो चला आया। आप आराम कर रहें थे, सो मैं बाहर ही बैठा रहा। नाहक आपको परेशान नहीं करना चाहता था।
‘‘अच्छा-अच्छा बैठो। कुछ काम हो तो कहो।’’
चतुरा को तो इसी दिन की प्रतीक्षा थी, सो उसे मौका मिल ही गया। चतुरा ने धीरे से कहना शुरू किया।
‘‘ओ, दादा।’’
‘‘हाँ-हाँ बोलो, घबराओ मत। निर्भय होकर अपनी बात कहो।’’
‘‘वो भोलू बंदर है ना, बड़ी सेखी मार रहा था। कह रहा था कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा। हम तो अपनी मर्जी के राजा हैं।’’
‘‘हाँ, और कुछ कहा उसने।’’
‘‘नहीं कुछ ज्यादा तो नहीं, फिर भी उसने कहा, अब तो शेर बूढ़ा हो गया है। अब जंगल को नए राजा की जरूरत है और इसके लिए गज्जू हाथी योग्य होगा। वह अभी जवान भी है और कुछ करने का माद्दा भी रखता है, और वह गधा, न घर, का न घाट का, उसकी हांँ में हाँ, मिला रहा था।’’ दादा इसे शिकायत मत समझिए। मैंने जो सुना वह आप से कह दिया।
जंगल में सभी जानते थे कि चतुरा सियार एक-दूसरे को लड़ाने का काम करता है। इसलिए उसकी बातों पर कोई विश्वास नहीं करता था। शेर सिंह को भी चतुरा की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन शंका के बीज तो उग ही आये।
शेर सिंह राजा होने के नाते सोच-समझकर निर्णय लेता था। फिर वह भोलू बंदर के व्यवहार से परिचित था। आज तक भोलू बंदर की कोई शिकायत नहीं थी। एकाएक उसकी शिकायत ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया।
शाम का समय था। इस समय सभी जानवर टहलने के लिए निकलते थे और कहीं एक जगह इकट्ठा होकर एक दूसरे का सुख-दुख बाँटते थे। आज शेर सिंह कुछ समय पहले निकलकर भोलू बंदर के पेड़ की ओर चल पड़ा। भोलू बंदर का पेड़ शेर सिंह के गुफा से कहीं अधिक दूर नहीं था। वही कोई आधा किलो मीटर की दूरी पर रहा होगा। जिस समय शेर सिंह भोलू बंदर के पास पहुँचा तब भोलू बाहर जाने के लिए निकल ही रहा था। वह एकाएक शेर सिंह को देखकर चौंक पड़ा। फिर अपने को संयत करते हुए शेर सिंह का आवभगत किया। भोलू के विनम्र व्यवहार देखकर शेर सिंह को ऐसे नहीं लगा कि कहीं भोलू ने ऐसा कहा होगा जेसै चतुरा ने उसे बताया है।
कुछ समय पश्चात ठहर कर शेर सिंह ने भोलू से पूछ-‘‘क्यों भोलू चतुरा एक दो दिन पहले तुमसे मिला था क्या?’’
जी, महाराज, दो दिन पहले इधर आया था। ढेंचू-ढेंचू ने चतुरा से यह पूछा कि अक्लमंद किसे कहते हैं, तो वह अपने को अक्लमंद बताते हुए अपने मुँह अपनी बड़ाई कर रहा था। तो मैंने कह दिया तुम अक्लमंद नहीं, धूर्त हो। बस तुम एक-दूसरे को लड़ाते रहते हो। सो वह नाराज होकर चला गया।
‘‘अच्छा यह बात है। ठीक है मैं इतना ही जानना चाह रहा था।’’ शेर सिंह को पूरी बात समझ में आ गई। वह समझ गया चतुरा कितना बदमाश है। वह तो भोलू से बदला लेने की फिराक में था। यदि बिना परखे मैं किसी तरह का निर्णय लेता तो मुझसे अपराध हो जाता।
शाम के समय सभी एक जगह इकट्ठा हुए। सबने अपनी अपनी बात कही। अंत में शेर सिंह ने कहा-‘‘सबसे अक्लमंद कौन है?’’ शेर सिंह के इस अटपटे सवाल को सुनकर सभी दंग रह गए। जब कोई कुछ नहीं बोला तब शेर सिंह ने कहा-‘‘तुम लोगों को नहीं मालूम, तो मैं बताता हूँ,सुनो, सबसे अक्लमंद चतुरा सियार है।’’ जैसे चतुरा सियार का नाम आया, एकाएक सभी हँस पड़े। चतुरा सियार अपनी पोल खुलती देखकर सिर झुकाए बैठा रहा।
‘‘तब तो चतुरा सियार को ही राजा बनना चाहिए। आज इसका राज तिलक कर दिया जाए।’’ गज्जू हाथी ने कहा। अब तो चतुरा सियार कि घिग्घी बंध गई। उसे कुछ सुझ नहीं रहा था। तब शेर सिंह ने पूरा वाकया सबके समक्ष रखा। सभी चतुरा की इस करतूत पर थू-थू करने लगे।
तब भालू दादा ने कहा-‘‘क्यों चतुरा इस तरह एक-दूसरे को लड़ना तुम्हें अच्छा लगता है। अब तो बात साफ हो गई है तुमने भोलू से बदला लेने के लिए ही शेर सिंह से शिकायत की थी।
अब चतुरा के पास माफी माँगने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। उसने खड़े होकर सबसे माफी माँगी। और ऐसी गलती कभी नहीं करने का वचन दिया।
●डॉ. बलदाऊ राम साहू
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]
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